Thalapathy Vijay: वक्फ संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद भी यह बवाल रुकने का नाम नहीं ले रहा है. इस कानून के खिलाफ विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों के विरोध के बीच सुप्रीम कोर्ट में इसके पक्ष में कई याचिकाएं भी दाखिल की गई हैं. इस सिलसिले में तमिल फिल्म एक्टर (Thalapathy Vijay) की पार्टी ने भी रविवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.
तमिल फिल्म अभिनेता और राजनेता थलपति विजय की पार्टी तमिलनाडु वेत्री कझगम (TVK) ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
Thalapathy Vijay का दावा मुस्लिमों के साथ भेदभाव

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में पहले ही कई याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं. दावा किया गया है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. इस बीच थलपति विजय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को भी चुनौती दी है.
मीडिया के मुताबिक, ”(Thalapathy Vijay) ने कहा की इस अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम मुस्लिम विरोधी है और आगे कहा कि संसद के निचले सदन में पारित विधेयक ने एक बार फिर संविधान और धर्मनिरपेक्ष भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है.
टीवीके मांग करता है कि सभी लोकतांत्रिक ताकतों की आवाज को ध्यान में रखते हुए लोकतंत्र विरोधी विधेयक को तुरंत वापस लिया जाए. अगर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ऐसा नहीं करती है, तो टीवीके मुस्लिम भाइयों के साथ उनके वक्फ अधिकारों के लिए कानूनी संघर्ष में शामिल होगा.”
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ये हस्तियां भी खटखटा चुके हैं कोर्ट का दरवाजा
आपको बता दें कि (Thalapathy Vijay) से पहले भी कई नेता वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटा चुके हैं. इनमें एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और इमरान प्रतापगढ़ी, आप विधायक अमानतुल्ला खान और आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद और समाजवादी पार्टी के सांसद जिया उर रहमान बर्क शामिल हैं.
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 क्या है?
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 केंद्र सरकार द्वारा लाया गया एक नया कानून है, जिसे लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है. इस कानून के जरिए वक्फ संपत्तियों को लेकर कई नियम बदले गए हैं. हालांकि आलोचकों का कहना है कि यह मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों को लेकर सरकार को ज्यादा अधिकार देता है, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
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