Scientists: जब दुनिया गर्मी से जल रही थी, धरती के सबसे ठंडे हिस्से अंटार्कटिका में कुछ ऐसा हुआ जिसने वैज्ञानिकों की रूह कंपा दी। एक दिन अचानक नासा के वैज्ञानिकों (Scientists) की नज़र समुद्री बर्फ में एक गहरे, रहस्यमयी गड्ढे पर पड़ी। ये कोई साधारण बर्फ़ की दरार नहीं थी। ये एक ‘पोलिन्या’ था, यानी बर्फ़ के अंदर बना एक खुला सागर। इस बीच, आइए जानते हैं कि इसके पीछे क्या रहस्य है?
Scientists का कांप उठा कलेजा
The great Antarctic sea ice factory “Shackleton Polynya”#DMV #DenmanMarine pic.twitter.com/4iJt9cxVJq
— Kaihe Yamazaki 🌊❄️ (@KaiheZak) April 9, 2025
माना जाता है कि यह गड्ढा हरियाणा से भी बड़ा था और अगर तुलना करें तो आधे बिहार जितना बड़ा था। इसे सबसे पहले ‘मौड राइज़’ नाम के पठार के पास देखा गया था, वो भी समुद्र के ठीक बीचों-बीच। नासा ने इसे एक प्राकृतिक घटना (अंटार्कटिका पोलिनेया) माना, लेकिन इसके पीछे के कारण मानव निर्मित थे।
पोलिन्या समुद्री बर्फ़ में एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ बर्फ़ टूटती है और नीचे से समुद्र की गहराई दिखाई देने लगती है। यह छेद कई हफ़्तों तक खुला रहा और वैज्ञानिकों (Scientists) के लिए एक चेतावनी की तरह था, क्या हम धीरे-धीरे धरती को जला रहे हैं?
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इलाकों में तबाही
शोधकर्ताओं ने पाया है कि इस विशाल गड्ढे के निर्माण के लिए सिर्फ़ हवाएँ या समुद्री लहरें ही ज़िम्मेदार नहीं हैं, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की भी इसमें बड़ी भूमिका है। जी हाँ, जो तूफ़ान पहले सिर्फ़ तटीय इलाकों में तबाही मचाते थे, अब बर्फीले इलाकों में भी अपने पैर पसार रहे हैं।
यह घटना पहली बार नहीं हुई है। 1974 और 1976 में भी ऐसा ही गड्ढा बना था, लेकिन तब यह सालों तक शांत रहा, लेकिन 2017 और अब हालिया घटना ने दिखा दिया है कि पृथ्वी कुछ कहना चाहती है और हम सुन नहीं रहे।
कैसे बना पोलिन्या?

वैज्ञानिकों (Scientists) ने बताया की डूबा हुआ मौड राइज़ पर्वत समुद्री धाराओं को उभारता है। सर्दियों में, दक्षिणावर्त घूमने वाला वेडेल गायर (वेडेल सागर में एक समुद्री धारा) तेज़ हो जाता है, जिससे ठंडे, नमकीन पानी की एक गहरी परत सतह के करीब आ जाती है। इससे नीचे की बर्फ पिघल गई। इससे सतह की बर्फ कमज़ोर हो गई और एक गड्ढा बनने लगा। इस प्रक्रिया को ‘अपवेलिंग’ कहते हैं।
गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय में भौतिक समुद्र विज्ञान के प्रोफ़ेसर फ़ेबियन रोक्वेट ने कहा, इस क्रेटर के निर्माण के लिए सिर्फ़ अपवेलिंग ही ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि कुछ अन्य कारक भी इसमें भूमिका निभाते हैं, जैसे समुद्री तूफ़ान और वायुमंडलीय नदियाँ जैसी वायुमंडलीय प्रक्रियाएँ। हालाँकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी घटनाएँ भविष्य के लिए चिंताजनक हैं।
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