President: असम के सोनितपुर जिले के रंगपारा में रहने वाले शिक्षक देबजीत घोष को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025 से राष्ट्रपति (President) द्वारा सम्मानित किया जा रहा है. उन्हें यह पुरस्कार मात्र 34 वर्ष की आयु में मिला है. वह डिब्रूगढ़ के नामसांग टी एस्टेट मॉडल स्कूल के प्रधानाचार्य हैं. वह स्कूल जाने के लिए रोज़ाना लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा करते हैं, जिसमें देहिंग पटकाई राष्ट्रीय उद्यान भी शामिल है.
देबजीत घोष ने 267 स्कूल छोड़ चुके बच्चों को वापस स्कूल में लाया ताकि यहाँ की शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो सके. वह चाहते हैं कि दसवीं पास करने वाले सभी छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करें.
बच्चों की भविष्य की चिंता
Mr. Debajit Ghosh, Teacher at Namsang TE Model School, Dibrugarh, Assam, is recognized for his transformative leadership and dedication in a remote tea garden community.
He organized a unique science exhibition with VSSE SAC and ISRO, sparking a love for learning and reducing… pic.twitter.com/oAwGLdfxss
— All India Radio News (@airnewsalerts) September 5, 2025
शिक्षक देबजीत घोष चाय बागान समुदाय के लिए आशा की किरण बन गए हैं. असम में सूरज उगते ही देबजीत घोष रोज़ाना 150 किलोमीटर की अपनी यात्रा पर निकल पड़ते हैं. उन्हें हर रोज़ दिहिंग पटकाई राष्ट्रीय उद्यान से गुज़रना पड़ता है. यह रास्ता बेहद खतरनाक है, बारिश के बाद सड़कें कीचड़ में बदल जाती हैं और हाथियों के आने का खतरा हमेशा बना रहता है, लेकिन देबजीत घोष का हौसला कभी कम नहीं होता. वह उन बच्चों को पढ़ाने के लिए यह कठिन यात्रा करते हैं.
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छात्रों के लिए एक नई आशा

जब उनसे पूछा गया कि थका देने वाली यात्रा के बावजूद वह डिब्रूगढ़ में क्यों रुके हैं, तो घोष ने कहा, “अगर मैं यहां नहीं रुकूंगा, तो नामसांग टीई मॉडल स्कूल में विकास कार्य करना संभव नहीं होगा. मुझे नियमित रूप से कार्यालय में दस्तावेज़ भेजने होते हैं, और मेरी पत्नी भी डिब्रूगढ़ में काम करती है. इसके अलावा, मैं अपनी कार में दो और शिक्षकों को साथ लाता हूँ, जबकि बाकी सभी साइकिल से आते हैं क्योंकि स्कूल तक कोई सीधा सार्वजनिक परिवहन नहीं है.”
स्कूल की स्थापना से पहले की स्थिति के बारे में बताते हुए देबजीत घोष ने कहा, पहले चाय बागानों के बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ता था क्योंकि 15 किलोमीटर के दायरे में कोई हाई स्कूल नहीं था. निकटतम हाई स्कूल तक पहुँचने के लिए देहिंग पटकाई राष्ट्रीय उद्यान को पार करना पड़ता था, जो बेहद जोखिम भरा था.” धीरे-धीरे उन्होंने इस शिक्षा प्रणाली में सुधार किया.
President ने किया सम्मानित
इसी कारण उन्हें 5 सितंबर को राष्ट्रपति (President) द्रौपदी मुर्मू द्वारा राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया. उनकी कहानी इस विश्वास का प्रतीक है कि एक शिक्षक पूरे समुदाय को बदल सकता है. आपको बता दें कि देबजीत घोष का करियर वर्ष 2013 में शुरू हुआ था। उन्होंने वर्ष 2013 में डिब्रूगढ़ बंगाली हाई स्कूल में स्नातक शिक्षक के रूप में कार्यभार संभाला था.