Dog: कुत्तों (Dog) को उनकी वफ़ादारी के लिए बहुत पहचान मिली है. हचिको में भी ऐसा ही एक अनोखा गुण था. इस अकिता कुत्ते की कहानी हमें इंसानों और कुत्तों के बीच के अद्भुत रिश्ते की याद दिलाती है. तो आइए जानते हैं हचिको की कहानी, और यह भी कि क्यों दुनिया 100 साल बाद भी एक कुत्ते को याद कर रही है. आगे जानते हैं आखिर क्यों 9 साल तक स्टेशन पर बैठा रहा ये कुत्ता?
कैसे बिछड़े दोनों?
This is the last photo of Hachiko,the dog who waited for his master’s return each day for 9 yeas until he too passed away. pic.twitter.com/hXx66zvtqu
— coup de grace (@azrenfarhan) May 8, 2019
कुत्ते (Dog) हाचिको का जन्म 1923 में हुआ था. 1924 में उसे एक प्रोफ़ेसर ने गोद ले लिया. दोनों डेढ़ साल तक साथ रहे, लेकिन उनका रिश्ता बहुत गहरा हो गया. एक बार हाचिको अपने मालिक के साथ शिबुया स्टेशन गया था, उस दिन एक दुर्घटना में प्रोफेसर घायल हो गए और सिर से अत्यधिक रक्तस्राव के कारण उनकी मृत्यु हो गई.
प्रोफ़ेसर की मौत के बाद, दूसरे लोगों ने कई महीनों तक हचिको को अपने पास रखने की कोशिश की, लेकिन वह कहीं नहीं रुका और वापस शिबुया आ गया. यहाँ वह रोज़ाना स्टेशन पर आकर अपने मालिक का इंतज़ार करने लगा.
हर मौसम में किया मालिक का इंतजार
सर्दी हो, गर्मी हो या बरसात, हचिको रोज़ स्टेशन पर अपने मालिक का इंतज़ार करता बैठा रहता था. पहले तो स्टेशन के कर्मचारियों ने उसे हटाने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे. 1932 में, हाचिको की कहानी एक अखबार में छपी और हाचिको देखते ही देखते मशहूर हो गया. दूर-दूर से लोग उसकी मदद के लिए आने लगे। हाचिको 1935 तक स्टेशन पर आता रहा, जिसके बाद उसकी मृत्यु हो गई.
इस पर बन चुकी है फिल्म

कुत्ता (Dog) हचिको के समर्पण को देखते हुए, शिबुया स्टेशन पर उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई. यह प्रतिमा 1935 में बनी थी, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई क्षति के कारण इसे फिर से बनाया गया. अब हचिको की कहानी जापान के बच्चों को पढ़ाई जाती है. बीबीसी से बात करते हुए हवाई विश्वविद्यालय की प्रोफेसर क्रिस्टीन यानो ने कहा कि हाचिको को एक आदर्श जापानी नागरिक माना जाता है.
बता दें की हचिको की उल्लेखनीय कहानी कई फिल्मों में भी दिखाई जा चुकी है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, हचिको की कहानी पहली बार 1987 में पर्दे पर दिखाई गई थी। इसके बाद 2009 में रिच गेरे अभिनीत एक फिल्म में भी यह कहानी दिखाई गई। चीन समेत कई अन्य देशों ने भी इस विषय पर फिल्में बनाई हैं।
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