Til Ki Kheti : हर किसान की चाहत होती है कि वो खेती से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाए. लेकिन ऐसा होता नहीं है. किसान अपनी फसल के लिए हमेशा चिंतित रहते हैं. कभी बारिश ना हो तो दिक्कत हो जाती है या कभी बारिश ज्यादा हो जाए तब भी उनकी फसलें खराब हो जाती है जिससे उनकी लागत तक नहीं निकल पाती हैं. ऐसे में किसानों के लिए फसल को लेकर काफी चिंता रहती हैं. लेकिन आज हम एक ऐसी फसल (Til Ki Kheti) के बारे में बताने जा रहे हैं जिसको बोने में लागत भी कम लगेगी और मुनाफा भी ज्यादा होगा. इसके साथ ही कुछ ही दिनों में ये पककर तैयार भी हो जाती हैं.
एक ऐसी फसल जो किसानों को पहुंचाएगी लाभ
ऐसी ही एक खेती है तिल की खेती (Til Ki Kheti), जिससे किसान तगड़ी कमाई कर सकते हैं. तिल (Til Ki Kheti) के प्रमुख उन्नत बीज कि जानकारी देते हुए बताया गया है कि टी-4, टी-12, टी-13 एवं टी-78 तिल के प्रमुख बीज है. किसानों को सर्वोत्तम उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रति एकड़ क्षेत्र में 4 से 5 ग्राम बीज की मात्रा की आवश्यकता होती है. बीज जनित रोग जड़ गैलन की रोकथाम के लिए बीज को 2.5 ग्राम प्रति ग्राही बीज की दर से केप्टान या थाईराम क्रैकनॉक से उपचारित करें या 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति ग्राही बीज के खाते से उपचारित करें. बोने की विधि का तिल के उत्पाद पर सीधा प्रभाव पड़ता है.
उन्नत बीज जो तिल कि खेती में देगी लाभ
तिल की खेती (Til Ki Kheti) के लिए मटियार रेतीली भूमि उपयुक्त है, लेकिन अम्लीय या अम्लीय मिट्टी अनुपयुक्त है. तिल की खेती के लिए विविधता का मान 5.5 से 8.0 हो. तिल की खेती (Til Ki Kheti) से पहले मिट्टी को पाटा रख भुरभुरा बना लें. एक या दो जुताई करके खेत को तैयार कर लें. तिल के अवशेष से पूर्व खेत तैयार करने का समय गोबर की खाद 10-15 टन प्रति नारियल मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाए गए. देश में सबसे ज्यादा तिल की खेती (Til Ki Kheti) राजस्थान में होती है. इसके अलावा महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार में भी तिल की खेती होती है.
राजस्थान में सबसे ज्यादा होती है तिल कि खेती
उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्र में तिल की खेती मुख्य फसल के रूप में होती है. राजस्थान सहित पूरे राज्य में तिल की खेती के सीजन में जाती है. इसके लिए समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक है. तिल की खेती के सीजन में 25 फरवरी से 10 मार्च के बीच होती है. किसान रबी और खरीफ के सीजन में तिल की खेती करते हैं. रबी सीज़न के लिए अगस्त के अंतिम सप्ताह से लेकर सितंबर के पहले सप्ताह तक की शुरुआत में सफेद और काले तिल (Til Ki Kheti) शामिल हैं. यह फसल लगभग 75 से 80 दिन में पककर तैयार हो जाती है.
तीन महीने के भीतर हो जाती है फसल तैयार
इसके साथ ही तिल (Til Ki Kheti) कि फसल बाजार में अच्छे दामों में बिकती हैं. जहां सरसों के तेल कि कीमत 200 रुपए प्तिर लीटर होती हैं. वहीं तिल के तेल कि कीमत 400 रुपए प्रति लीटर तक होती है. तिल कि खपत पूरे सालभर रहती हैं. वहीं यह फसल 90 से 100 दिनों के अंदर ही पककर तैयार हो जाती हैं. इसके साथ ही इसकी आवक भी बहुत होती हैं. इसमें सफेद तिल (Til Ki Kheti) बहुत मात्रा में बाजार में बिकते हैं. वहीं काले तिल कि मांग भी अच्छी होती है.
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