Chhath Puja 2025 : दिवाली से ज्यादा सभी को छठ पूजा (Chhath Puja 2025) का इंतजार रहता है. छठ सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होती है. इस त्योहार पर उनकी विशेष पूजा की जाती है. गांव से लेकर शहरों तक में साफ-सफाई, घाटों की तैयारी शुरू हो जाती है. पूरा महौल भक्तिमय हो जाता है और छठ गीतों की गूंज से गूंजने लगता है.
छठ पर महिलाएं और पुरुष व्रत रखकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। मान्यता है कि छठी मैया की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होता है और जीवन में शांति और खुशहाली आती है
कब है छठ पूजा?

इस साल छठ पूजा 20 अक्टूबर 2025, शनिवार से शुरू हो रही है, और इसी दिन नहाय-खाय का आयोजन भी होगा. अगले दिन, यानी रविवार 26 अक्टूबर, खरना मनाया जाएगा. इसके बाद, सोमवार 27 अक्टूबर को सभी महिलाएं सांध्य अर्घ्य देकर डूबते सूर्य को प्रणाम करेंगी. अंत में, मंगलवार 28 अक्टूबर को पर्व का समापन उषा अर्घ्य देकर उगते सूर्य को अर्पित करने के साथ होगा.
खरना

इस साल छठ पूजा 20 अक्टूबर 2025, शनिवार से शुरू हो रही है, और इसी दिन नहाय-खाय का आयोजन भी होगा। अगले दिन, यानी रविवार 26 अक्टूबर, खरना मनाया जाएगा। इसके बाद, सोमवार 27 अक्टूबर को सभी महिलाएं सांध्य अर्घ्य देकर डूबते सूर्य को प्रणाम करेंगी। अंत में, मंगलवार 28 अक्टूबर को पर्व का समापन उषा अर्घ्य देकर उगते सूर्य को अर्पित करने के साथ होगा
कैसे करें खरना की पूजा?

खरना की पूजा के लिए व्रत रखने वाली महिलाएं घर में मिट्टी का चूल्हा बनाती है और उसे जलाने के लिए कोयले या आम की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि चूल्हे को शुद्ध माना जाता है और उस पर प्रसाद पकाया जाता है. खरना पर गुड़ और चावल की खीर बनाई जाती है. इसके अलावा गेहूं के आटे की रोटी या पूड़ी और पारंपरिक ठेकुआ भी बनाया जाता है. प्रसाद तैयार करने के बाद सबसे पहले छठी मैया को अर्पित किया जाता है, और फिर घर के सभी सदस्य इस ग्रहण करते हैं.
36 घंटे भक्त करते हैं निर्जला व्रत

खरना प्रसाद के बाद, व्रती महिलाएं अगले लगभग 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं. यह कठिन व्रत छठी मैया को समर्पित होता है और भक्तों की अटूट आस्था और दृढ़ संकल्प का प्रतीक माना जाता है. इस व्रत के माध्यम से भक्त अपनी भक्ति दिखाते हुए मां छठी मैया को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।
कैसे दे सूर्य को अर्घ्य ?

कड़ी तपस्या के बाद व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. सभी घाट या नदी के पानी में जल का लोटा लेकर सूर्य देव को चढ़ाते हैं. इसके साथ ही सूर्य मंत्रों का जाप किया जाता है. अर्घ्य देते समय लाल चंदन, फूल और कुछ बूंदे कच्चे दूध को जल में मिलाएं. इसी का साथ छठी मैया का व्रत पूरा होता है.
इस दौरान घाट पर भक्तों का जनसैलाब उमड़ा रहता है. जहां लोकगीतों की गूंज और लोगों की आवाज से माहौल भक्तिमय रहता है.
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