माँ कामख्या मंदिर में होते हैं कई चमत्कार, जानिए कैसे खून की तरह लाल हो जाती है ब्रह्मपुत्र नदी

कामाख्या शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक हैं, जो कि आज बहुत ही बड़ा आस्था का केंद्र बन चुका है. इस मंदिर में कई शक्तियां छुपी हुई हैं, जिससे आए दिन यहां पर चमत्कार होते रहते हैं. इन शक्तियों के चलते यहां अघोरियों और तांत्रिकों का गण भी माना जाता है. चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है, यहां पर माता के योनि भाग के होने से माता रानी रजस्वला अभी होती है.

कामाख्या शक्तिपीठ असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो कि नीलांचल पर्वत से पूरे 10 किलोमीटर की दूरी पर है. मंदिर बहुत ही चमत्कारी है और यहां से जुड़ी कई अन्य रोचक बातें भी हैं. आज हम आपको मंदिर से जुड़ी ऐसे ही कुछ रोचक तथ्य बताने वाले हैं.

माँ कामख्या मंदिर में होते हैं कई चमत्कार, जानिए कैसे खून की तरह लाल हो जाती है ब्रह्मपुत्र नदी

1- स्त्रियों में राजस्वाला

ऐसा माना जाता है कि, पूर्ण स्त्रीत्व व मासिक धर्म के बाद ही होता है, लेकिन हिंदू धर्म में मासिक धर्म को अपवित्र ही माना जाता है. हर स्त्री को इस दौर से गुजरना ही पड़ता है, ऐसे में स्त्रियों को पूजा अनुष्ठान या फिर किसी पवित्र पर जाने से मना कर दिया जाता है. दूसरी तरफ मासिक धर्म के समय कामाख्या देवी के मंदिर में माता रानी को पवित्र माना जाता है.

2. तांत्रिक सिद्धियों के लिए गढ़

कामाख्या माता के मंदिर को तांत्रिक सिद्धियों के लिए सबसे उपयुक्त स्थान माना जाता है. माता के इस मंदिर में तारा, कमला, भैरवी, बगलामुखी जैसी तांत्रिक देवियों की मूर्तियां भी स्थापित हैं. यहां पर तांत्रिक सिद्धियों के लिए अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ भी है.

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3. मंदिर का पुन: निर्माण हुआ

जानकारी के मुताबिक सोलहवीं शताब्दी में माता रानी के इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था. इतिहास में इस बात का जिक्र किया गया है. कालांतर में कूच बिहार के राजा नर नारायण ने सत्रहवीं शताब्दी में ही इस पवित्र मंदिर का निर्माण किसने करवाया था.

4. कामाख्या शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध है मंदिर

धर्म ग्रंथों में वर्णित कामाख्या माता का मंदिर 108 शक्तिपीठों में से एक हैं. माता कामाख्या का मंदिर गुवाहाटी के नीलांचल पर्वत के बीचो बीच लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. ग्रंथों में उल्लेखित है कि, माता पार्वती जब पिता द्वारा अपमानित होकर यज्ञ की अग्नि में कूदी थी, तो नाराज होकर महादेव देवी के शव को लेकर तांडव करने लगे थे. उस समय भगवान विष्णु क्रोधित शिव को शांत करने का प्रयास कर रहे थे और समस्त ब्रह्मांड की सुरक्षा करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से उन्होंने सती के शव के टुकड़े कर दिए थे. उसी समय सती की योनि और गर्भ से कर यहीं पर गिरे थे, आज उसी स्थान पर माता कामाख्या का मंदिर स्थित है.

5. कामाख्या देवी से विवाह के लिए सीढ़ियों की शर्त

कामाख्या देवी मंदिर को लेकर सीढ़ियों की भी एक कहानी है. कहा जाता है कि, कामाख्या देवी के मंदिर के नजदीक की सीढ़ियां पूरी नहीं है. कथा के मुताबिक किसी जमाने में एक नरकासुर नाम का राक्षस था जो कि, कामाख्या की सुंदरता पर मोहित हो गया था और उनसे विवाह भी करना चाहता था. देवि ने उस राक्षस के सामने शादी की बात को लेकर एक शर्त भी रखी थी. माता रानी की शर्त थी कि, एक ही रात में नीलांचल पर्वत से मंदिर तक सीढ़ियां बनाना. यदि ऐसा होता है, तभी माता उससे विवाह करेंगी.

राक्षस ने देवी की शर्त के मुताबिक सीढ़ियां बनाना शुरू कर दी. धीरे-धीरे माता रानी को महसूस हुआ कि, राक्षस सीढ़ियां पूरी कर लेगा. माता ने कौवे को मुर्गा बनाकर उसे रात्रि में बाग देने के लिए कह दिया. दूसरी तरफ नरकासुर को लगा कि, वह अपनी शर्त हार गया है. जब उसे आभास हुआ तो उसने मुर्गे को बलि चढ़ा दी. जहां पर मुर्गे की बलि दी गई थी उसी स्थान को आज कुकुराकता के नाम से जाना जाता है. मंदिर की सीढ़ियां भी तभी से अधूरी पड़ी हैं.

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6. मासिक चक्र

कहा जाता है कि, यहीं पर देवी का एकमात्र ऐसा स्वरूप है, जहां हर महीने मासिक धर्म आता है. यह बात सुनने में थोड़ी अजीब लगती है, लेकिन फिर भी कामाख्या देवी के मानने वालों के मुताबिक हर साल जून के महीने में कामाख्या देवी का रजस्वला स्वरूप सामने आता है. जिसमें उनके बहते हुए रक्त से पूरी ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है.

इसी दौरान कामाख्या मंदिर के गर्भ गृह के दरवाजे खुद ही बंद हो जाते हैं. ऐसे समय में देवी के दर्शन करना भी निषेध माना गया है. पौराणिक कथाओं में भी बताया गया है कि, ऐसे 3 दिनों में कामाख्या माता मासिक धर्म में ही रहती हैं और उनकी योनि से रक्त स्राव होता है. इसीलिए देवी कामाख्या को ‘बहते रक्त की देवी’ भी कहते हैं.

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7. वाममार्गी साधना के किए सर्वोच्च पीठ

वाममार्गी तंत्र साधना के लिए कामाख्या देवी का मंदिर सर्वोच्च पीठ माना गया है. मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी जैसे जितने भी बड़े तांत्रिक साधक आज तक हुए हैं, उन्होंने यहां पर तंत्र साधना की थी. मान्यता के अनुसार तंत्र साधना में रजस्वला स्त्री और उनके रक्त का भी बहुत महत्व है. इसी कारण इस मंदिर में रजस्वला के दौरान तंत्र साधना के लिए अघोरी आते हैं.

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8. योनि वस्त्र भी चढ़ाया जाता है

कामाख्या मंदिर में जब पर्व की शुरुआत होती है, तो गर्भ ग्रह में भी योनि के आकार में स्थित शिलाखंड है, उसे महामुद्रा कहा जाता है . उसी स्थान पर सफेद वस्त्र भी पहनाए जाते हैं. यह सफेद कपड़े राजस्वाला की वजह से बाद में लाल हो जाते हैं.जब पर्व हो जाता है तो, वहां के पुजारी उस पवित्र वस्तु को भक्तों में बांट देते हैं.

मेरा नाम उर्वशी श्रीवास्तव है. मैं हिंद नाउ वेबसाइट पर कंटेंट राइटर के तौर पर...