Somvar-Vrat-Ki-Katha

Somvar Vrat Ki Katha: सप्ताह का पहला दिन यानी सोमवार (Somvar Vrat Ki Katha) भगवान शिव को समर्पित किया गया है. इस दिन लोग भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. तो वहीं कई लोग सोमवार के व्रत भी रखते हैं. सोमवार के व्रत को रखने से कुंडली में चंद्र ग्रह की स्थिति मजबूत होती है. इसके अलावा अविवाहितों के लिए विवाह के योग बनने लगते हैं. इतना ही नहीं ये व्रत अच्छे वर की प्राप्ति के लिए भी शुभ साबित होता है.

यहां हम आपको बताने जा रहे हैं 16 सोमवार का व्रत सोमवार व्रत कथा जिसको करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है. प्रत्येक सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है और सावन में आने वाला सोमवार अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है.

सोमवार का व्रत करने से पूर्ण होते है सारे काम

Somwar Vrat Ki Katha

सावन का पूरा महीना भगवान शिव की आराधना के लिए विशेष होता है. इसलिए सावन में आने वाले प्रत्येक सोमवार को भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए व्रत रखते हैं. सोमवार का व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है. इस दिन व्रत रखने से दाम्पत्य जीवन में हर्षित होती है. वहीं कन्या राशि वाले और लड़के अच्छे भविष्य की कामना से सोमवार का व्रत रखते हैं. अगर आप सोमवार का व्रत रख रहे हैं तो पूजा के दिन यह व्रत कथा जरूर पढ़ें.

सोमवार की व्रत कथा

किसी नगर में एक साहूकार रहता था. उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसका कोई वंश नहीं था इस कारण वह बहुत दुखी था. पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूर्ण श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था.

जानिए सोमवार व्रत कि पूर्ण कथा एवं इसका फल

Somvar Vrat Ki Katha : सोमवार के दिन इस कथा के बिना अधूरा है व्रत, भगवान शिव करेंगे हर कष्टों का निवारण 

उनकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती काफी प्रसन्न हुई, और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूरी करने कि बात कही थी. इस पर भगवान शिव ने कहा कि, पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है. लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए ऐसा किया.

माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उनकी आयु केवल बारह वर्ष होगी. माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था. उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख था. वह पहले की शिवाजी की पूजा करता रहा. कुछ समय बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ.

जब वह ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया. साहूकार ने अपने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ करो. जहां भी यज्ञ कराया जाता है वहां ब्राह्मणों को भोजन कराना और दक्षिणा देना होता है.

साहूकार के बेटे को देखकर उसके मन में एक विचार आया. उसने सोचा कि क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनी राजकुमारी से शादी करा दूं. विवाह के बाद इन्हें धन देकर विदा कर दीजिए और राजकुमारी को अपने नगर ले जाइए. लड़के को खिड़की के सामने वस्त्र पहनकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया. लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था.

उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी. उन्होंने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है, लेकिन जिस राजकुमार के संग उसे भेजा जाएगा, वह एक आंख से काना है.’ मैं तो काशी पढ़ रहा हूँ. जब राजकुमारी ने चुनी पर लिखी बातें पढ़ीं तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई. राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई.

साहूकार को मिला था संतान प्राप्ति का वरदान

Somvar Vrat Ki Katha : सोमवार के दिन इस कथा के बिना अधूरा है व्रत, भगवान शिव करेंगे हर कष्टों का निवारण 

अपनी माँ से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है. मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ. शिवाजी के विष्णुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए. मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया. संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे. पार्वती ने भगवान से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा. आप इस व्यक्ति के कष्ट को सर्वथा दूर करें.

जब शिवाजी मृत बालक के अधीन हो गए तो उन्होंने कहा कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का स्वामी बना दिया. इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे. माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित रहने का वरदान दिया. शिवाजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया.

सन्तान कि मृत्यु के बाद भी शिव ने दी लम्बी आयु

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शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने शहर की ओर चल दिया. दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उनका विवाह हुआ था. उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया. उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी देखभाल की और अपनी बेटी को विदा किया. इधर साहूकार और उनकी पत्नी रह रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगी, लेकिन अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह अति प्रसन्न होंगी. उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है. इसी प्रकार जो कोई सोमवार का व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

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