उत्तर भारतीयों के लिए छठ का पर्व सबसे बड़ा पर्व है ,इसी कारण इसे महापर्व कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सीता ने सबसे पहले छठ पूजन बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर संपन्न किया था, फिर महापर्व की शुरुआत हुई। इसलिए छठ को बिहार का महापर्व माना जाता है। यही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। धार्मिंक मान्यताओं के मुताबिक रामायण काल में माता सीता ने पहला छठ पूजन बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर संपन्न किया था। इसका प्रमाण यहां आज भी माता सीता के अस्तचलगामी सूर्य और उदयमान सूर्य को अर्घ्य देते चरण चिह्न मौजूद है।
कोरोना काल में राज्य सरकार ने जारी किए दिशा-निर्देश
कोरोना समय में छठ पूजा को लेकर राज्य सरकार ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं। राज्य सरकार ने श्रद्धालुओं को घाट पर अर्घ्य के दौरान तालाब में डुबकी नहीं लगाने के निर्देश दिए हैं। जिला प्रशासन को निर्देश जारी किया है कि वह अपने क्षेत्र में घाटों के किनारे इस तरह बैरिकेडिंग करें कि श्रद्धालु पानी में डुबकी न लगा सकें। 6० साल से अधिक उम्र व्यक्ति और 1० साल से कम उम्र के बच्चों तथा बुखार एवं कोरोना लक्षण से ग्रसित लोगों को घाट पर नहीं जाने की सलाह दी गई है।
जिला प्रशासन को यह भी निर्देश दिया गया है कि वह लगातार लोगों से अपील करते रहें है कि इस बार वह घाटों पर ना जाकर छठ अपने घरों में ही मनाएं। अगर श्रद्धालु तालाब या घाटों पर छठ पर्व मनाने आते हैं। वहां जिला प्रशासन द्वारा कोरोना वायरस दिशा-निर्देश का सख्ती से पालन कराया जाए। लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए भी कहा गया है। इसके अलावा घाटों पर मास्क लगाना अनिवार्य है।
चार दिवसीय महापर्व छठ के अवसर पर प्रदेश एवं देशवासियों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी है। उन्होंने कहा कि आस्था का यह महापर्व आत्मानुशासन का पर्व है, लोग आत्मिक शुद्धि और निर्मल मन से अस्ताचल और उदयीमान भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। उन्होंने भगवान भास्कर से राज्य की प्रगति, सुख, समृद्धि, शांति और सौहार्द्र के लिये प्रार्थना की।
उन्होंने राज्यवासियों से अपील करते हुए कहा कि वे इस महापर्व को मिल-जुलकर आपसी प्रेम, पारस्परिक सौहार्द और शांति के साथ मनायें। वर्तमान में कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुये प्रत्येक व्यक्ति का सचेत रहना नितान्त जरुरी है।