श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के आने के पहले ही देश में जोरों शोरों से तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। ये एक ऐसा पर्व है जो केवल भारत में नहीं अपितु पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया जाता है और लोगों को इसका बेसब्री से इंतजार भी रहता है। इस मौके पर कई लोग व्रत रखते हैं कुछ जन्मोत्सव का व्रत रखते हैं तो कुछ लोग जन्म का व्रत रखते हैं ऐसे में असमंजस की स्थिति बन जाती है कि व्रत कब रखना है।
ये हैं जन्माष्टमी के व्रतभेद
भगवान श्री कृष्ण के जन्म जन्माष्टमी के दौरान दो तरह की व्रत की परंपराएं प्रचलित हैं। धर्मसिंधु विष्णु पुराण और भविष्य पुराण में इन दोनों ही तरह के व्रतों का जिक्र हैं। पहला व्रत सप्तमी वृद्धा अष्टमी में जन्माष्टमी का व्रत और दूसरा उदय कालीन अष्टमी तिथि में व्रत रखा जाता है। इन दोनों ही व्रतों की अलग अलग मान्यताएं भी हैं।
सप्तमी वृद्धा अष्टमी में जन्माष्टमी- इसमें सप्तमी युक्ता अष्टमी तिथि में जन्माष्टमी का व्रत रखा जाता है। जिसके अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म सप्तमी वृद्धा अष्टमी तिथि की आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था और इसीलिए इस दिन व्रत रखा जाता है।
वहीं उदय कालीन अष्टमी तिथि में नवमी को अष्टमी के रूप में मानकर जन्मोत्सव के रूप में व्रत रखा जाता है। पंचांग के अनुसार इस वर्ष अर्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी तिथि 11 अगस्त मंगलवार को है। वही उदय कालीन अष्टमी तिथि 12 अगस्त बुधवार को होगी
क्या है मुहूर्त
पंचांग के अनुसार इस वर्ष 11 अगस्त को सुबह 9 बचकर 6 मिनट पर अष्टमी शुरू हो जाएगी। वहीं बुधवार को सुबह 11:16 पर अष्टमी समाप्त हो जाएगी। 11 अगस्त को अष्टमी सूर्योदय कालीन नहीं होगी। जबकि 12 अगस्त को सूर्य उदय कालीन ही होगी।
कब कौन रखेगा व्रत
पंचांग के चलते जो लोग जन्माष्टमी के दौरान उदय कालीन तिथि में व्रत रखते हैं वह 12 अगस्त को ही रखेंगे। वैष्णव समाज के सभी साधु संत समेत वृंदावन मथुरा गोकुल में भी 12 अगस्त को ही जन्माष्टमी मनाई जाएगी।
गृहस्थ समाज के लिए 11 अगस्त का दिन जन्माष्टमी मनाने के लिए उत्तम माना गया है। वहीं 11 व 12 अगस्त दोनों ही तारीख भगवान श्री कृष्ण की भक्ति के लिए शुभ है भक्त किसी भी दिन भगवान श्रीकृष्ण की उपासना कर सकते हैं।