भारत के आलराउंडर हार्दिक पंड्या इस वक्त अपने करियर में बहुत अच्छे चल रहे है। कम समय में हार्दिक ने टीम में अपनी जगह पक्की कर ली है। टीम इंडिया के जोरदार ऑलराउंडर के तौर पर पहचान बना चुके हार्दिक पंड्या, 1993 में गुजरात के चोरयासी में पैदा हुए थे। तो चलिए आज हम आपको उनके क्रिकेट के सफर के बारे में बताएंगे।
पापा की तबियत के कारण बिगड़ी घर की स्थिती
हार्दिक 22 साल के हैं और बेहद साधारण परिवार से आते हैं। हार्दिक के पिता फाइनेंसिंग का काम करते थे, लेकिन इससे ज्यादा कमाई नहीं हो पाती थी। 2010 में उन्हें हार्ट अटैक आया, खराब होती सेहत के कारण वह नौकरी नहीं कर पाए। इस वजह से घर की हालत बेहद खराब हो गई।हार्दिक के बड़े भाई का नाम क्रुणाल है और वो भी पेशे से एक क्रिकेटर हैं। शुरुआती दिनों में हार्दिक और उनके भाई क्रुणाल 400-500 रुपये कमाने के लिए पास के गांव में क्रिकेट खेलने जाते थे। गांव का नाम था ‘पालेज’ उन्हें हर मैच के 400-500 रुपये मिल जाते थे।
मैगी खाकर किया गुजारा
उस समय हार्दिक की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जिसके चलते उनका परिवार किराये के घर में रहता था। एक इंटरव्यू के दौरान हार्दिक ने बताया था कि, उस दौरान वो केवल मैगी खाते थे। क्योंकि उनके पास पैसे नहीं होते थे कि वो खाना खा सकें। इतना ही नहीं हार्दिक के पास अपना क्रिकेट किट भी नहीं होता था।
नवीं तक पढ़े हैं हार्दिक
हार्दिक पांड्या पढ़ाई में अच्छे नहीं थे और नौवीं क्लास में फेल हो गए। इसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और सिर्फ क्रिकेट पर ही फोकस किया। पूर्व क्रिकेटर किरण मोरे ने हार्दिक पांड्या को अपनी एकेडमी में तीन साल तक फ्री ट्रेनिंग दी। शुरुआत में हार्दिक पांड्या लेग स्पिनर थे, लेकिन किरण मोरे की सलाह से वे फास्ट बॉलर बने। घरेलू क्रिकेट में दोनों भाई बड़ौदा की टीम से खेलते हैं।
जब हार्दिक अपने कोच के अंडर के खेल रहे थे उनके कोच ने भारत-ऑस्ट्रेलिया मैच में बॉल ब्वॉय के लिए फॉर्म भरने को कहा था, लेकिन पंड्या ने इसे तवज्जो नहीं दी। वहीं उनके भाई कुणाल ने पॉर्म भर दिया, ऐसे में कोच हार्दिक से नाराज हो गए।
कोच की नाराजगी की वजह से पंड्या को दो साल तक अंडर-16 क्रिकेट से अलग रहना पड़ा। यहां तक कि अंडर-19 के आखिरी साल भी वह ड्रॉप होने की कगार पर रहे। लेकिन असिस्टेंट कोच के अलावा तीन और सीनियर प्लेयर्स की वजह से उन्हे मौका मिला।