Team India : भारतीय मूल के दो क्रिकेटरों ने टीम इंडिया (Team India ) से मुँह मोड़कर विदेशी देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण करके बहस छेड़ दी है। फैंस इन दोनों क्रिकेटरों के फैसले से हैरान हैं, वहीं, इन दोनों खिलाड़ियों के इस फ़ैसले ने आधुनिक क्रिकेट में वफ़ादारी और अवसरों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आइये जानते हैं इन दो क्रिकेटरों के हारे में जिन्होंने देश छोड़, विदेश से किया डेब्यू……
1-सौरभ नेत्रवलकर–Team India छोड़ विदेश से किया डेब्यू
हम जिन दो खिलाड़ियों की बात कर रहे हैं वो कोई और नहीं बल्कि सौरभ नेत्रवलकर और उन्मुक्त चंद हैं। हम शुरुआत करते हैं सौरभ नेत्रवलकर से। 2015 में, सौरभ नेत्रवलकर भारत में पेशेवर क्रिकेट छोड़ सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए।
2010 के अंडर-19 विश्व कप में टीम इंडिया (Team India) के लिए सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले, मुंबई में जन्मे इस तेज़ गेंदबाज़ ने भारतीय घरेलू क्रिकेट की अनिश्चितताओं के बावजूद एक स्थिर करियर चुना। हालाँकि, क्रिकेट के प्रति उनका जुनून कभी कम नहीं हुआ।
6 जून 2024 को, नेत्रवलकर ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की और 2024 आईसीसी पुरुष टी 20 विश्व कप के दौरान सुपर ओवर गेंदबाजी करके पाकिस्तान के खिलाफ एक प्रसिद्ध जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद रातोंरात सनसनी बन गए।
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2-उन्मुक्त चंद: भारत छोड़ अमेरिका के लिए किया डेब्यू
कभी टीम इंडिया (Team India) का भविष्य माने जाने वाले उन्मुक्त चंद के सफ़र में उस समय नाटकीय मोड़ आया जब उन्होंने सिर्फ़ 28 साल की उम्र में भारतीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया। 2012 में भारत को अंडर-19 विश्व कप दिलाने के बावजूद, उन्हें सीनियर टीम में आने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
जिसके बाद चंद ने भारत छोड़ अमेरिका का रूख किया, चंद माइनर लीग क्रिकेट में एक बेहतरीन खिलाड़ी बन गए और बाद में ऑस्ट्रेलिया की बिग बैश लीग में इतिहास रच दिया। हालाँकि उन्हें USA की टी20 विश्व कप 2024 टीम में जगह नहीं मिली, लेकिन उन्होंने USA के लिए डेब्यू जरूर किया।
दो प्रतिभाएँ, एक साहसिक निर्णय
उन्मुक्त चंद और सौरभ नेत्रवलकर, जिन्हें कभी भारतीय क्रिकेट के उभरते सितारे माना जाता था, ने उस व्यवस्था से अलग होने का कठिन निर्णय लिया जिसमें वे पले-बढ़े थे। सीमित अवसरों और घटती पहचान के कारण, दोनों ने विदेश में अपनी क्रिकेट यात्रा जारी रखने का फैसला किया।
उनकी कहानियाँ बेवफ़ाई नहीं, बल्कि घर के दरवाज़े बंद होने पर विदेशी धरती पर सपनों को साकार करने के साहस को दर्शाती हैं। आज, वे लचीलेपन के प्रतीक हैं, यह दिखाते हुए कि सफलता उन जड़ों से दूर भी पनप सकती है जहाँ कभी उसकी उम्मीद की जाती थी।
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