कुमाऊं यूनिवर्सिटी में वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव लड़कर जीतने वाली और राजनीति, इंग्लिश जैसे विषयों में डबल एमए करने वाली हंसी प्रहरी काफी प्रतिभाशाली महिला है. इनका जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर क्षेत्र में हवालबाग ब्लॉक के गोविंन्दपुर के पास रणखिला गांव में हुआ था. यहीं पर वह अपने पूरे परिवार के साथ रहती थीं. उनके पिता छोटा-मोटा रोजगार करते थे, जिससे वह अपने सभी बच्चों को पढ़ाते थे.
हंसी अपने गांव में पढ़ाई को लेकर काफी मशहूर थीं. धीरे-धीरे उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय में एडमिशन ले लिया और एक से एक एक्टिविटी में बढ़-चढ़कर भाग भी लेने लगी. 1998-99 में अपनी मेहनत और लगन के दम पर वह कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट बन गई. विश्वविद्यालय में उनका खास नाम चलता था.
विश्वविद्यालय में 4 साल नौकरी की
बात करें उनकी नौकरी की तो वह शुरुआत से ही एजुकेशन से संबंधित सभी प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी. उनके इस हुनर को देखकर उन्हें नौकरी मिली. विश्वविद्यालय में उन्होंने लगभग 4 साल नौकरी की. साल 2008 में मां प्राइवेट जॉब भी कर चुकी हैं. हंसी इतनी ज्यादा प्रतिभाशाली महिला थी कि, उनके बिना कैंपस में कोई भी बहस नहीं होती थी. उनके बिना हर फंक्शन अधूरा लगता था. उनके इस हुनर को देखकर सबको यही लगता था कि, वह अपने जीवन में काफी उन्नति करेंगी, जीवन में कब क्या हो जाए यह किसी को नहीं पता होता है.
4 साल की नौकरी के बाद अचानक उनकी जिंदगी बदल गई. विवि की पहचान रह चुकी हंसी के जीवन में एक नया मोड़ आ चुका है. आज वह हरिद्वार की सड़कों पर, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड पर भीख मांगते हुए दिखाई दे रही है. उनकी इस हालत को देखकर किसी को भी यकीन नहीं होता कि वह कभी विश्व विद्यालय की शान हुआ करती थी.
शादी के बाद हुई ऐसी हालत
हंसी ने खुद इस बारे में कोई साफ बात नहीं कही है. उनका मानना है कि उनकी वजह से उनके परिवार वालों पर भी असर पड़ेगा और साथ ही भाई-बहन भी परेशान होंगे. हंसी के मुताबिक पहले वह बहुत ही खुश थी. लेकिन शादी के बाद उन के बीच कुछ आपसी विवाद हुए थे. शादीशुदा जिंदगी में वह बहुत परेशान थीं जिसके बाद उनकी हालत हुई है. धीरे-धीरे वह बीमार भी रहने लगी. इसी बीच वह अपने परिवार से अलग होकर है हरिद्वार आ गई और धर्म के कामों में अपना मन लगाने लगी.
बेटे के साथ फुटपाथ पर रहती है हंसी
नौकरी छूट जाने के बाद साल 2012 से वह हरिद्वार में ही रहती है वही भीख मांगकर अपने 6 साल के बच्चे का पालन पोषण भी करती है बेटी तो नानी के पास रहती है लेकिन वह और उनका बेटा हरिद्वार की सड़कों पर जीवन बिता रहे हैं. हंसी इतनी पढ़ी लिखी है कि वह अपने बेटे को फुटपाथ पर ही हिंदी अंग्रेजी संस्कृत जैसी तमाम भाषाएं सिखा रही है अपने बेटे को एक उज्जवल भविष्य देना चाहती है.
मुख्यमंत्री को भी लिख चुकी हैं पत्र
हंसी अपनी सहायता के लिए कई बार सचिवालय विधानसभा के चक्कर लगा चुकी है. साथ ही वह मुख्यमंत्री को पत्र भी लिख चुकी है. हंसी का मानना है कि यदि सरकार उनकी सहायता करेगी तो वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकती है.
इसके अलावा हंसी ने बताया कि, अगर उनका इलाज करवाया जाए तो वह फिर से ठीक हो सकती हैं और दोबारा नौकरी भी कर सकती है. वह खुद अपने दम पर बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहती है.