समुद्र का किनारा हो, हिलोरे मारती हुई लहरे, डूबता हुआ सूरज ,समुद्र का यह द्रश्य सबसे बेहतरीन होता है। जब कभी समुद्र की लहरें विकराल रूप दिखाती हैं, तब सुनामी आती है और हमारे देश ने जब से सुनामी झेली है, तब से पता चल गया है कि समंदर शांत नहीं होता। सोचने वाली बात यह है कि उन मछुवारों के बारे में, जो इस लहरों पर गोते लगाते हैं, जाल फेंकते हैं और मछलियां लेकर तटों पर लौटते हैं। ना जाने कितनी ही कश्तियां हैं जो तटों तक पहुंच नहीं पाती और पानी में समा जाती है। ना जाने कितने लोग जान जोखिम में डाल कर इन कश्तियो से निकलते है। सबसे मुश्किल काम समुद्र से मछलियां पकड़ना माना जाता है।
इस काम को सदियों से पुरुष करते आए हैं, लेकिन केरल की के.सी. रेखा ने इस धारणा को तोड़कर ये दिखाया कि औरतें केवल बीच पर हाथ थामे, पैरों से टकराती लहरें और डूबते सूरज की ठंडक को महसूस करने वाली साथी नहीं, बल्कि वे लहरों से टकराकर हर रोज़ मौत को हराकर लौटने वाली सिपाही भी बन सकती है। उन्होंने यह साबित कर दिखाया है।
रेखा है भारत की इकलौती लाइसेंस धारी मछुआरिन
ऐसे तो बहुत सी महिलाये हैं, जो मछलियां पकड़ना जानती हैं, लेकिन के.सी. रेखा की बात ही कुछ अलग है। क्योकि वो देश की पहली और इकलौती मछुआरिन हैं, जिसके पास लाइसेंस है। उन्हें सरकार ने समु्द्र में उतरने की अनुमति दी है। आप यह सुनकर हैरान हो जायेंगे कि केरल की के.सी. रेखा से पहले किसी भी औरत को भारत के अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर पर मछली पकड़ने का लाइसेंस नहीं मिला था।
केरल के स्टेट फ़िशरीज़ डिपार्टमेंट ने रेखा को ‘डीप शी फिशिंग लाइसेंस’ दिया है। इस लाइसेंस के मिलने के बाद प्रिमियर मरीन रिसर्च एजेंसी ‘द सेंट्रल मरीन फिशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट’ ने रेखा को सम्मानित भी किया।
45 साल की के. सी. रेखा केरल राज्य के थ्रिशूर जिले के गांव ‘चवक्कड़’ की रहने वाली हैं। अरब सागर में मछली पकड़ने का काम करती हैं। बता दें कि रेखा का परिवार पहले से इस व्यवसाय में है पर लेकिन कभी भी रेखा ने समुद्र में उतरने का प्रयास नहीं किया था।
बेटियों की पढ़ाई ना हो प्रभावित
चवक्कड़ गांव में रेखा अपने पति पी. कार्तिकेयन और बेटियों के साथ सुखी जीवन जी रही थीं। साल 2004 में सुनामी के आने के बाद से समुद्र में हालात ख़राब हो गए। फिर भी रेखा के पति अपने साथियों के साथ काम को दोबारा जमाने की कोशिश करते रहे। लेकिन लगभग 10 साल पहले पी. कार्तिकेयन के दोनों साथी आर्थिक तंगी और समुद्र का विकराल स्वरूप के चलते काम छोड़कर चले गए।
अकेले समुद्र में नाव उतराना बस में नहीं था, किसी मज़दूर या साथी की ज़रूरत थी। तब रेखा ने अपने पति के साथ पहली बार समुद्र की गहराई में कदम रखा। काम बंद होने के वजह से बेटियों की पढ़ाई प्रभावित हो रही थी, लेकिन घर का ख़र्च निकालना मुश्किल था। इसलिए पी. कार्तिकेयन मज़दूर नहीं रखा और रेखा ने उनका साथ दिया जिससे बेटियों की पढ़ाई प्रभावित न हो और खाने का ख़र्च निकलता रहे।