आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के बहराइच में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से राजा सुहेलदेव के स्मारक की आधारशिला रखी। साथ ही प्रधानमंत्री ने महाराजा सुहेलदेव स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय, बहराइच का भी लोकार्पण किया। सरकार राजा सुहेलदेव को राजभर के तौर पर प्रचारित कर रही है, जबकि इससे पहले उन्हें राजा सुहेलदेव पासी के तौर पर भी खूब प्रचारित किया गया था। एक तबका ऐसा भी है जो राजा सुहेलदेव को राजपूत समाज का मानता है।
पीएम ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए रखी आधारशिला
महाराजा सुहेलदेव की जयंती पर यूपी के बहराइच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए महाराजा सुहेलदेव मेमोरियल का शिलान्यास किया। इस दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस कार्यक्रम में मौजूद रहे।
न्यूज़ एजेंसी एएनआई के मुताबिक, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए महाराजा सुहेलदेव स्मारक और चित्तौरा झील के विकास कार्य की आधारशिला रखी। साथ ही प्रधानमंत्री ने महाराजा सुहेलदेव स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय, बहराइच का भी लोकार्पण किया।
दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए महाराजा सुहेलदेव स्मारक और चित्तौरा झील के विकास कार्य की आधारशिला रखी। साथ ही प्रधानमंत्री ने महाराजा सुहेलदेव स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय, बहराइच का भी लोकार्पण किया। pic.twitter.com/47MENvcq1V
— ANI_HindiNews (@AHindinews) February 16, 2021
राजभर समुदाय के बोटों साधने की है राजनीति
गैरतलब है कि राजभर समुदाय का प्रदेश में बहुत महत्व है। सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर पहले बीजेपी के साथ जुड़े थे लेकिन अब वो भाजपा का साथ छोड़ चुके हैं ऐसे में बीजेपी खुद ही राजभर समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए जतन कर रही है। इसलिए सरकार राजा सुहेलदेव को एक राजभर के तौर पर प्रचारित कर रही है, जबकि इससे उन्हें महाराजा सुहेलदेव पासी के तौर पर भी खूब प्रचारित किया गया, जबकि एक तबका ऐसा भी है, जो राजा सुहेलदेव को एक राजपूत समाज का मानता है।
इसी वजह से उत्तर प्रदेश के राजपूत समुदाय के लोगों ने राज्य सरकार की इन कोशिशों पर आपत्ति जाताई है कि राजा सुहेलदेव को राजपूत की बजाय राजभर के तौर पर क्यों प्रचारित किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के नेता और पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने राजा सुहेलदेव के नाम पर राजनीतिक पार्टी (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) गठित की है, उन्होंने सरकरा की इन कोशिशों को एक राजनीतिक स्टंट बताया है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री अनिल राजभर ने ओमप्रकाश राजभर को राजभर समाज का नेता होने पर ही सवाल उठाया है।
कौन थे राजा सुहेलदेव, क्या लिखा है इतिहास के पन्ने में
राजा सुहेलदेव 11वीं सदी में बहराइच-श्रावस्ती के राजा थे। वैसे सुहेलदेव के बारे में ऐतिहासिक जानकारी न के बराबर है। लेकिन माना जाता है कि 11वीं सदी में महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण के वक्त गजनवी के भांजे सालार मसूद गाज़ी ने बहराइच पर आक्रमण किया लेकिन गजी वहां के महाराजा सुहेलदेव से बुरी तरह पराजित हुआ और मारा गया। यह युद्ध 15 जून 1033 को राजा सुहेलदेव और सालार मसूद गाज़ी के बीच बहराइच के चित्तौर झील के तट पर हुआ था। राजभर और पासी जाति के लोग उन्हें अपना वंशज मानते हैं। इस वजह से सुहेलदेव का पूर्वांचल के कई जिलों में खासा प्रभाव है।
अगर इतिहास की बात करें तो, सालार मसूद की यह कहानी चौदहवीं सदी में अमीर खुसरो की किताब एजाज-ए-खुसरवी और इसके अलावा 17वीं सदी में लिखी गई किताब मिरात-ए-मसूदी में मिलता है। लेकिन महमूद गज़नवी के समकालीन इतिहारकारों ने न तो सालार मसूद गाजी का जिक्र किया है, और न ही राजा सुहेलदेव का जिक्र किया है, न ही बहराइच का जिक्र किया है।
इतिहास के पन्नों में महाराजा सहेलदेव का इतिहास भले ही न दर्ज हो लेकिन लोक कथाओं में राजा सुहेलदेव का जिक्र होता रहा है, और ऐसा हुआ है कि इतिहास के दस्तावेजों की तरह लोगों के मन में उनकी वीर पुरुष के तौर पर छवि बनी हुई है।