इस महंगाई के ज़माने में कई जगहों में लोग भूखे भी सो जाते हैं। वहीं ऐसे समय में यदि कोई पांच रूपए में भरपेट भोजन कराता है। जी हाँ, ऐसा ही है नोएडा शहर में यह पर एक शख्स देसी घी के तड़के से प्रतिदिन मात्र पांच रुपए में सैकड़ों लोगों को पेटभर के भोजन करा रहा है। यही नहीं यहा पर भोजन, कपड़ा और दवा तीनों चीजें सस्ते भाव में उपलब्ध हैं। पांच, दस रुपए देकर यहा पर स्वाभिमान के साथ खाना खाते हैं और अपने मन मुताबिक कपड़े खरीदते हैं। ‘
उत्तर प्रदेश में नोएडा के सेक्टर-29 स्थित गंगा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में दादी की रसोई’ नाम की ये दुकान है। यहां रोज दोपहर 12 से 2 बजे तक देसी घी के तड़के से सैकड़ों लोगों की भीड़ रहती है। यहां पांच रुपए में पेटभर भोजन, 10 रुपए में मनपसंद कपड़े और प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोलकर मरीजों को सस्ती दवा भी उपलब्ध करा रहे हैं।
अनूप सिर्फ दादी की रसोई ही नहीं चला रहे हैं, देश के किसी भी हिस्से में आयी प्राकृतिक आपदाओं में भी ये हजारों लोगों की सहायता करते हैं।
‘दादी की रसोई’ नाम इसलिए रखा
समाजसेवी 59 वर्षीय अनूप खन्ना से कम पैसों में पौष्टिक खाना देने की वजह पूछी गई, तो उन्होंने बताया कि मैं चाहता तो ये खाना और कपड़े मुफ्त में भी दे सकता था, पर कम पैसे लेने की वजह से यहां भोजन करने वाले लोगों का स्वाभिमान बना रहे। हर तरह का इंसान पांच रुपए देकर सम्मान से भोजन करता है। वहीं बात कपड़ों के लिए लागू है यहां जरूरतमंद लोग अपनी मनपसंद के कपड़े 10 रुपए देकर ले सकते हैं।”
दादी की रसोई में खाना खाने वाले लोग एक भिक्षुक से लेकर दुकान के मालिक तक शामिल हैं। इस रास्ते से गुजरने वाले लोग भी इसका स्वाद चखे बिना आगे नहीं बढ़ते। अनूप के दिमाग में यह रसोई खोलने का विचार कैसे आया तब अनूप ने कहा,
“मेरी माँ बहुत बीमार रहती थी तो उन्हें खाने में हल्का भोजन खिचड़ी देते थे। एक दिन उन्होंने खाते समय कहा कि तुम लोगों ने मेरे खाने में बहुत कटौती की है, इसलिए जितना बचाया है उसे जरूरतमंदों को खिलाना। मेरे बच्चों ने उसी समय इसका नाम ‘दादी की रसोई’ दे दिया।”
इसी काम की थी मुझे तलाश
अनुन खन्ना को अगस्त साल 2015 में अपने जन्मदिन पर 21 अगस्त को कुछ लोगों के सहयोग से इसकी शुरुआत कर दी। शुरूआती दिनों में पांच से दस लोग भोजन करते थे। फिर कुछ दिनों में यहां के स्वादिष्ट भोजन की चर्चा होने लगी। अब यहां रोजाना लगभग 500 लोग भोजन करते हैं।
अनूप के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हीं की विचारधारा से प्रेरित होकर ये पिछले 20 वर्षों से ज्यादा अलग-अलग तरह के सामाजिक कार्य कर रहे थे। अनूप बताते हैं,
“मैं किसी सरकारी पद पर नहीं था इसलिए जब भी किसी मुहिम की शुरुआत करता लोग तरह-तरह के सवाल पूंछने लगते। मेरा मानना है कि ऐसे काम की शुरुआत करूं जहां किसी का हस्तक्षेप न हो। जबसे दादी की रसोई खोला तबसे लगा यही वह काम है जिसकी मुझे तलाश थी।”
यहां रोज खाने में चावल और अचार के साथ अलग-अलग तरह की पौष्टिक सब्जियां और दालें बनती हैं। ख़ास पर्व पर यहां पूड़ी, हलवा, मिठाई और आइसक्रीम भी मिलती है।
‘दादी की रसोई’ को चलाने के लिए पैसे कहां से आते हैं इस पर अनूप ने कहा,
“इस रसोई को चलाने के लिए सहयोगी व्हाट्स ऐप ग्रुप और फेसबुक पेज के माध्यम से हमारी सहायता करते हैं। उन्हें लगता है अगर हम इस समूह को पैसा देंगे तो वह जरूरतमंद तक जरुर पहुंचेगा।”
आत्मसंतुष्टि के लिए करते हैं ये काम
ये सारा काम अनूप अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए करते हैं। अनूप के इस सराहनीय कार्य को देखते हुए अब मदद करने वालों की कमी नहीं रह गयी है। यहां के विधायक पंकज सिंह भी दादी की रसोई में सहयोग करते हैं, इन्होंने एक रसोई की और शुरुआत कर दी है। ‘दादी माँ का सदभावना स्टोर’ में लोग हर तरह के कपड़े दे जाते हैं।
कुछ लोग ब्रांडेड कपड़े भी देते हैं, कई लोग शादी के अपने महंगे जोड़े दे जाते हैं। मुझे लगता है भिक्षुक और मजदूर भी अपने मनपसंद कपड़े सस्ते दरों में पहन सकें। अनूप का कहना है कि सरकार को भी कोई भी चीज मुफ्त में नहीं देनी चाहिए लेकिन उसे सस्ती दरों में उपलब्ध कराना चाहिए।