Chattisgarh News : सास और बहू का रिश्ता बहुत ही मधुर माना जाता है। जहां बहू का पूरे परिवार के साथ मधुर संबंध होता है, वहीं सास का अपनी नई बहू के साथ भी खास रिश्ता होता है। वह परिवार की मुखिया और सबसे बड़ी होती है और परिवार की सबसे सहयोगी भी। ऐसे में दोनों के बीच कड़वाहट आना आम बात है।
लेकिन छत्तीसगढ़ के बिलासपुर (Chattisgarh News) में सास और बहू के बीच अनोखा प्यार देखने को मिला। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से एक ऐसी खबर आई है, जिस पर कम से कम इस बार तो यकीन करना मुश्किल लग रहा है। जी हां, यहां सास और बहू के रिश्ते का ऐसा खूबसूरत मेल सामने आया है, जिसे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे।
छत्तीसगढ़ में हैं सास का अनोखा मंदिर
दरअसल बिलासपुर में रहने वाली 11 बहुओं ने अपनी सास का मंदिर बनवाया। साथ ही उन्हें सोने के आभूषणों से सजाया जाता है और रोजाना पूजा-आरती भी की जाती है। वे शिष्या हैं और ये सभी कई महीनों (Chattisgarh News) में एक बार मंदिर के सामने भजन-कीर्तन भी करती हैं। रतनपुर गांव बिलासपुर जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर बिलासपुर-कोरबा रोड पर है। यहां महामाया देवी का मंदिर है। जहां साल 2010 से अंतिम संस्कार किए जा रहे हैं। यह मंदिर वो जगह थी जहां साल 2010 में गीता देवी नाम की महिला का निधन हुआ था। इस मंदिर को उनकी 11 बहुओं ने बनाया था।
11 बहुओं ने बनावाया था सास का मंदिर
एक खबर के मुताबिक ये सभी बहुएं महीने में एक बार मंदिर के सामने भजन-कीर्तन भी करती हैं। रतनपुर गांव बिलासपुर-कोरबा रोड़ पर है, यहां गीता देवी नाम की महिला का मंदिर है। इस मंदिर को उनकी (Chattisgarh News) 11 बहुएं हैं जिनमें तीन बहुएं और उनकी ननदें भी हैं। सभी ने बताया कि गीता देवी उन्हें अपनी बहनों की तरह प्यार करती हैं और उनकी सलाह लेकर ही कोई काम करती हैं। सभी से कई गलतियां होती हैं। इसलिए उनकी बहुओं ने अपनी सास की याद को अपने मंदिर में संजोकर रखा है। कुछ लोगों का कहना है कि गीता देवी की बहुएं अपने मंदिर में रोजाना पूजा-अर्चना करती हैं।
समाज में पेश की अनोखी मिसाल
बता दें कि रतनपुर गांव में कलाकार शिवप्रसाद तंबोली का संयुक्त परिवार रहता है। यह मंदिर उनकी पत्नी गीता देवी का है। तंबोली परिवार का कहना है कि इस प्यार की वजह साफ है, जब (Chattisgarh News) वह जीवित थीं तो अपनी सभी बहुओं से बेहद प्यार करती थीं। ऐसे में जब बहुओं को अपनी सास की याद आने लगी तो उन्होंने खुद को उनके मंदिर के लिए समर्पित करने का फैसला किया।
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