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Delivery boy became deputy collector

Delivery boy: गिरिडीह के एक छोटे से गांव कपिलो से निकलकर झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की परीक्षा पास कर डिप्टी कलेक्टर बनने वाले सूरज यादव की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है. आर्थिक तंगी, संसाधनों की कमी और जीवन की तमाम कठिनाइयों को पीछे छोड़कर सूरज ने जो मुकाम हासिल किया है, वह आज हजारों युवाओं को आशा और साहस की नई दिशा दिखा रहा है.

बड़े सपनों वाला सूरज

Delivery Boy
Delivery Boy

सूरज यादव के पिता राजमिस्त्री हैं और दिहाड़ी मज़दूरी करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि कभी-कभी दो वक़्त का खाना भी मुश्किल से मिल पाता था, लेकिन सूरज का बड़ा सपना सरकारी अधिकारी बनने का था. इस सपने को साकार करने के लिए उसने रांची में रहकर कड़ी मेहनत शुरू कर दी.

पांच घंटे काम करके की पढाई

सपने की राह आसान नहीं थी. अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए सूरज ने स्विगी डिलीवरी बॉय (Delivery boy) और रैपिडो राइडर का काम शुरू किया, लेकिन शुरुआत में उसके पास अपनी बाइक भी नहीं थी. ऐसे में उसके दोस्त राजेश नायक और संदीप मंडल ने अपनी स्कॉलरशिप के पैसे देकर सूरज की मदद की. सूरज ने एक सेकेंड-हैंड बाइक खरीदी और प्रतिदिन पांच घंटे काम करके अपनी पढ़ाई का खर्च पूरा किया।

परिवार बना हौसले की ताकत

सूरज की बहन और पत्नी ने भी मुश्किल समय में उसका पूरा साथ दिया। उसकी बहन ने घर की ज़िम्मेदारी संभाली, जबकि उसकी पत्नी ने हर कदम पर उसका हौसला बढ़ाया। सूरज का दिन काम में और रात पढ़ाई में बीतता था। थकान के बावजूद, उसका उत्साह कभी कम नहीं हुआ।

जेपीएससी इंटरव्यू के दौरान जब सूरज ने बताया कि वह डिलीवरी बॉय (Delivery boy) का काम करता है, तो बोर्ड के सदस्य पहले तो चौंक गए। उन्हें लगा कि शायद यह सहानुभूति बटोरने की कोशिश है। लेकिन जब उन्होंने डिलीवरी से जुड़े तकनीकी सवाल पूछे, तो सूरज ने इतने सटीक जवाब दिए कि सबका शक यकीन में बदल गया।

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