Dhirendra Shastri: मध्य प्रदेश के छतरपुर में बागेश्वर धाम सरकार के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने मुस्लिमों के त्योहार को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने देशभर में बकरीद (ईद उल अजहा) पर कुर्बानी और लव जिहाद के बढ़ते मामलों के खिलाफ आवाज उठाई है.
तो चलिए आगे जानते हैं कि धीरेंद्र शास्त्री (Dhirendra Shastri) ने मुस्लिम त्योहार के बारे में क्या-क्या कहा?
Dhirendra Shastri ने बकरीद पर क्या कहा?
Chhatarpur, Madhya Pradesh: Dhirendra Krishna Shastri of Bageshwar Dham on Eid al-Adha (Bakra Eid) says, “Violence against living beings is not acceptable in any community, culture, or religion. We do not support animal sacrifice or rituals like Bakra Eid. If we cannot save a… pic.twitter.com/Y8BhvDkgF3
— IANS (@ians_india) May 31, 2025
बकरीद पर कुर्बानी को लेकर धीरेंद्र शास्त्री (Dhirendra Shastri) ने कहा कि किसी भी संप्रदाय, संस्कृति या धर्म में जानवरों के खिलाफ हिंसा निंदनीय है. उन्होंने कहा, ‘हम बकरीद के पक्ष में नहीं हैं. अगर हम किसी को जीवन नहीं दे सकते तो हमें किसी को मारने का भी अधिकार नहीं है.’ इसके लिए विकल्प हैं. अगर उस समय ऐसी कोई व्यवस्था होती तो बकरे की बलि दी जाती है.
हम भी बलि प्रथा के पक्ष में नहीं हैं. हमारे सनातन धर्म में भी कई जगह बलि प्रथा है. हम इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन अब समय बदल गया है. इसलिए हमें लगता है कि जीवों के प्रति हिंसा बंद होनी चाहिए.
लव जिहाद को लेकर दिया बड़ा बयान

लव जिहाद के बढ़ते मामलों पर धीरेंद्र शास्त्री (Dhirendra Shastri) ने कहा कि हम साधुओं का कमंडल और बागेश्वर बालाजी का मंडल तैयार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि मरने से पहले हम हिंदुओं के लिए कुछ ऐसा करेंगे कि भविष्य में कोई भी हिंदुओं की सभ्यता और संस्कृति पर उंगली उठाने से पहले दो बार सोचेगा।
हमारे संन्यासी बाबा की प्रेरणा और आशीर्वाद से सब कुछ तय होता है और कैलेंडर में भी यह लिखा होता है कि किस समय क्या करना है.
भारत में कब मनाया जाएगा बकरीद?
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार बकरीद ज़िलहिज्जा महीने की 10 तारीख़ को मनाई जाती है. सऊदी अरब में चांद दिखने के बाद 6 जून को बकरीद मनाई जाएगी, जबकि भारत में यह त्यौहार 7 जून (शनिवार) को मनाया जाएगा. 28 मई की शाम को भारत में चांद दिखने के बाद यह तिथि तय की गई।
बकरीद सिर्फ कुर्बानी का त्योहार नहीं है, बल्कि इसे अल्लाह के प्रति समर्पण, त्याग और इंसानियत की भावना का प्रतीक माना जाता है। मुस्लिम समुदाय इसे पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाता है।
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