Diwali Celebration : इन दिनों पूरे देश और दुनिया में खुशियों का त्यौहार (Diwali Celebration) मनाया जा रहा है। इस त्यौहार में दीपदान, मिठाई बांटने का रिवाज हैं। इसके साथ ही दिवाली बिना पटाखे चलाए सुनी सी लगती हैं। लेकिन कुछ ऐसी जगहें भी हैं जहां पटाखे पूरी तरीके से बैन हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे गांवों के बारे में बता रहे हैं जहां 20 सालों से दिवाली पटाखे फोड़कर नहीं मनाई (Diwali Celebration) गई और आज तक भी वहां इस पर रोक है।
आज हम इस बारे में बताए जा रहे हैं।वहीं तमिलनाडु के 7 गांव ऐसे हैं जहां सिर्फ दिवाली मनाई जाती है। बिना किसी आवाज के जहां आतिशबाजी की गूंज पूरे देश में सुनाई देती है।
तमिलनाडु के इन 7 गाँवों में नहीं फोड़े जाते पटाखे
तमिलनाडु के इरोड जिले के 7 गांवों में यह त्योहार खास तौर पर रोशनी के साथ मनाया (Diwali Celebration) जाता है। इसके साथ ही वन्यजीवों के संरक्षण को भी बढ़ावा नहीं दिया गया। यह गांव इरोड से 10 किलोमीटर दूर वडामुगाम वेलोड के आसपास स्थित है जहां पक्षियों को पवित्र माना जाता है। इस साल सेलप्पमपलायम, वडामुगम वेलोडे, सेम्मंडमपलायम, कुरुक्कनकाट्टू वलासु, पुंगमपडी और 2 अन्य ने ‘शांत’ दीपावली की परंपरा को कायम रखा हैं। वे पिछले 22 वर्षों से इस संरक्षण दृष्टिकोण का पालन कर रहे हैं।
वजह जानकार हैरान होंगे आप
अक्टूबर से जनवरी के बीच हजारों स्थानीय पक्षी और अन्य क्षेत्रों से आए पक्षी अंडे देते हैं और उन्हें सेने के लिए अभयारण्य में ले जाते हैं। हालांकि, आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर के महीने में पक्षी अभयारण्य के आसपास रहने वाले 900 से अधिक परिवारों ने पक्षी अभयारण्य के आकर्षण को नहीं तोड़ने का फैसला (Diwali Celebration) किया।
ऐसा इसलिए क्योंकि पक्षियों को तेज आवाज और प्रदूषण के कारण परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। तमिलनाडु के इस गांव में ब्रेड अभयारण्य वर्ष 1994 में खोला गया था। प्रवासी पक्षी यहां आते हैं, अनजाने में क्षेत्र के लोगों ने दिवाली नहीं मनाने का फैसला किया।
20 साल से अधिक हो गए बिना पटाखों की दिवाली
कूकलम गांव के लोगों ने लोअर स्टार्स के साथ मिलकर एक नाथन स्थापित करने का भी फैसला किया। यह सब पक्षियों के लिए किया जा रहा है। यह गांव इरोड से 10 किलोमीटर दूर वडामुगाम वेलोडे के आसपास स्थित है, जहां पक्षियों को पवित्र माना जाता है। यहां भी सेलप्पमपलायम, वडामुगाम वेलोडे, सेम्मंडमपलायम, करुक्कनका वर्षातु वलसु, पुंगमपडी और दो अन्य ने ‘शांत’ दीपावली की परंपरा को कायम रखा है। हजारों स्थानीय पक्षी और अन्य क्षेत्रों के पक्षी अक्टूबर से जनवरी के बीच अंडे देते हैं और उन्हें सेने के लिए अभयारण्य में ले जाते हैं।
बिना पटाखों के इस तरीके से मनाते हैं दिवाली
इन गांवों में रहने वाले लोगों का कहना है कि दीपावली (Diwali Celebration) के दौरान वे अपने बच्चों के लिए नए कपड़े तैयार करते हैं, दीये सजाते हैं और उन्हें केवल फुलझड़ियाँ जलाने देते हैं और बम नहीं फोड़ते हैं ताकि पक्षियों को परेशानी न हो। इस वजह से लोगों ने यह निर्णय लिया हैं। और इस निर्णय को सभी को पालन करना होता हैं और सभी सहर्ष इसका पालन भी करते हैं।
यह भी पढ़ें : 21 करोड़ देने के बाद भी निकोलस पूरन नहीं होंगे LSG के कप्तान, ये दिग्गज सँभालेगा केएल राहुल की कुर्सी