Lady Barber

Lady Barber: लॉकडाउन के दौरान संघर्ष की अलग-अलग कहानियां सामने आई हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको सीतामढ़ी की एक ऐसी महिला की कहानी बता रहे हैं, जिन्हें मर्दानी कहा जाता है। इस मर्दानी की कहानी बेहद दिलचस्प है। जिसने समाज के खिलाफ जाकर अपनी जिंदगी जीने का अनोखा तरीका अपनाया है। इस महिला ने नाई (Lady Barber) का पेशा चुना है। जिस पर अब तक पुरुषों का दबदबा रहा है। जब मर्दानी की कहानी इलाके में चर्चित हुई, तो वह रातों-रात लोगों के लिए रोल मॉडल बन गई।

बिहार की सुखचैन देवी बनी Lady Barber

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बिहार के सीतामढ़ी के बाजपट्टी प्रखंड के बसौल गांव की सुखचैन देवी नाई का काम करती हैं। लॉकडाउन में पति का रोजगार छिन जाने से वह काफी हताश और निराश थीं। पूरा परिवार आर्थिक बोझ तले दब रहा था। तब सुखचैन देवी ने अपनी आजीविका को आगे बढ़ाने के लिए कंघी और कैंची (Lady Barber) का सहारा लिया। आज सुखचैन देवी अपने गांव के आसपास के इलाकों में घूम-घूम कर लोगों के लिए नाई का काम करती हैं।

रोज नाई का काम करके पालती है परिवार का पेट

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सुखचैन देवी इस काम से रोजाना 200 से 250 रुपये कमा लेती हैं। जिससे उनका परिवार अब चैन से दो वक्त का खाना खा पा रहा है। लॉकडाउन के दौरान सुखचैन देवी सुबह ही गांव में घूमने निकल जाती थीं। शाम होते-होते उनके हाथ में कमाई के दो सौ से ढाई सौ रुपये होते। इससे पूरा परिवार आराम से खाना खा लेता था। सुखचैन देवी ने झिझक छोड़कर जब इस काम में कदम आगे बढ़ाया तो उनसे बाल-दाढ़ी (Lady Barber) बनवाने वालों की कतार लग गई। गांव में उनका सम्मान बढ़ा।

जिलाधिकारी और अन्य लोगों ने भी बढ़ाया हौसला

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जिलाधिकारी अभिलाषा शर्मा ने उनका हौसला बढ़ाया। साथ ही उनकी मदद भी की। सुखचैन देवी ने कहा कि उन्हें इस काम को करने में कोई परेशानी नहीं है और न ही कोई शर्म है। अगर उन्हें सरकारी योजना का लाभ मिले तो वह और बड़ी सफलता हासिल करेंगी। पति की मौत के बाद देवर को बनाया सहारा सुखचैन देवी की शादी बाजपट्टी के पथराही गोट में हुई थी। उन्होंने साबित कर दिया कि महिलाओं (Lady Barber) की तुलना किसी से नहीं की जा सकती है। 

पति की मौत के बाद खुद ने संभाला कामकाज

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बीमारी के कारण उनके पति की मौत हो गई थी। इसके कुछ दिनों बाद ससुराल और माता-पिता की सहमति से उनकी दूसरी शादी देवर रमेश से करा दी गई। इसके बाद उनका परिवार (Lady Barber) अच्छे से चल रहा था। लेकिन जब लॉकडाउन के कारण आर्थिक बोझ ने उन्हें मुश्किल में डाल दिया तो उन्होंने नाई बनकर यह साबित कर दिया कि गांवों और कस्बों में महिलाओं के बारे में यह धारणा कि वे सिर्फ खाना बनाने तक ही सीमित हैं और घर चलाना पुरुषों की जिम्मेदारी है, अब बहुत पीछे छूट चुकी है। 

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