Northern Railway;दिल्ली का एक ऐसा गुमनाम रेलवे स्टेशन (Northern Railway) है, जिसकी यादें आज भी पाकिस्तान के लोगों के दिलों में गहरे तक जमी हुई हैं। यह स्टेशन, जो अब समय की धूल में छिप चुका है, कभी विभाजन की त्रासदी का साक्षी था। जब 1947 में भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब इस स्टेशन से हजारों लोग अपने घर, अपनी जमीं, और अपने परिवार को हमेशा के लिए छोड़कर पाकिस्तान के लिए रवाना हुए थे। वह दौर न केवल राजनीतिक बदलावों का था, बल्कि एक गहरी मानवीय पीड़ा और दर्द का भी था, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है।
Northern Railway: विभाजन की दर्दनाक यादें
यह स्टेशन (Northern Railway) उन दर्दनाक कहानियों का गवाह बना, जहां लोग अपनी जड़ों से बिछड़ते हुए आंखों में आंसू और दिल में भारी दर्द लेकर खड़े होते थे। विभाजन के समय, इस रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ इकट्ठा होती थी, जिसमें हर व्यक्ति की आंखों में अपने अपनों से अलग होने का दुख साफ झलकता था। उस समय की ट्रेनों को ‘मौत की ट्रेनें’ भी कहा जाता था, क्योंकि कई लोग उस सफर में जिंदा मंजिल तक नहीं पहुंच सके। ट्रेन में सवार होने वाले हजारों लोग इस अनिश्चितता में होते थे कि वे अपनी मंजिल पर पहुंचेंगे भी या नहीं, और पहुंचेंगे तो कौन उनके साथ होगा, कौन नहीं।
इस स्टेशन पर रोजाना ऐसी दिल दहला देने वाली कहानियां लिखी जाती थीं, जिनकी गूंज आज भी पाकिस्तान के कई परिवारों के दिलों में सुनाई देती है। यह वह स्थल था, जहां लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों को आखिरी बार देखा था, और कई लोग तो यह भी नहीं जानते थे कि उनके परिजन जिंदा बचेंगे या नहीं। न जाने कितने बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग इस बंटवारे के दौरान अपने परिवार से हमेशा के लिए बिछड़ गए। आज भी जब पाकिस्तान के लोग विभाजन की उन कड़वी यादों को याद करते हैं, तो इस रेलवे स्टेशन का नाम आते ही उनकी आंखें नम हो जाती हैं।
एक भूला हुआ इतिहास
इस स्टेशन (Northern Railway) का ऐतिहासिक महत्व सिर्फ विभाजन तक ही सीमित नहीं है। यह एक प्रतीक बन चुका है उन अनगिनत पीड़ाओं का, जिनका सामना लोगों ने उस समय किया था। कई पाकिस्तानी परिवार आज भी इस स्टेशन का नाम लेकर अपने बुजुर्गों की कहानियां सुनाते हैं, जो उस दौर में इस रास्ते से गुजरते हुए पाकिस्तान पहुंचे थे। यह रेलवे स्टेशन, जिसे अब शायद कम ही लोग जानते होंगे, उनके लिए एक यादगार स्थल बन चुका है, जो हमेशा उन दुखद पलों को याद दिलाता है।
आज यह स्टेशन भले ही इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया हो, लेकिन इसकी यादें आज भी भारत-पाकिस्तान के विभाजन से प्रभावित लोगों के दिलों में जिंदा हैं। यह उन हजारों बेगुनाहों की आवाज बन चुका है, जिनकी जिंदगियां इस बंटवारे ने हमेशा के लिए बदल दीं।