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Menstrual Leave : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर आदेश जारी किया जिसमें महिलाओं के लिए मासिक धर्म के दौरान छुट्टी के लिए गुहार लगाई थी. इस आदेश में कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के लिए अवकाश (Menstrual Leave) के दौरान कानून द्वारा उन्हें नुकसान पहुंचाया जा सकता है और उन्हें नौकरी से दूर रखा जा सकता है. कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि यह फैसला लेना सरकार का काम है कोर्ट का नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार (Menstrual Leave) को निर्देश दिया कि वह राज्यों और अन्य राज्यों के साथ परामर्श करके महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश पर एक आदर्श नीति तैयार करे.

कोर्ट ने मासिक धर्म की छुट्टी का फैसला केंद्र को सौंपा

Menstrual Leave

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया जिसमें मुख्य न्यायाधीश दीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ कार्यरत रही. इसमें उन्होंने कहा कि यह (Menstrual Leave) मुद्दा नीति से संबंधित है और अदालतों के विचार करने के लिए नहीं है. पीठ ने कहा कि इसके अलावा महिलाओं को ऐसी छुट्टी देने के संबंध में अदालत का फैसला प्रतिकूल और हानिकारक साबित हो सकता है क्योंकि उन्हें काम पर रखने से (Menstrual Leave) बचाव किया जा सकता है. पीठ ने सरकार पूछा कि इस तरह की छुट्टियों में अधिक महिलाओं को शामिल करने के लिए कैसे प्रोत्साहित करें? कोर्ट ने कहा कि इस तरह की छुट्टी अनिवार्य रूप से करने से महिलाओं (Menstrual Leave) को छुट्टी से दूर रखा जाएगा और हम ऐसा नहीं चाहते.

कोर्ट ने कहा यह फैलसा महिलाओं के लिए होगा हानिकारक

Menstrual Leave

पीठ ने अपनी बात (Menstrual Leave) रखते हुए आगे कहा कि, ‘यह वास्तव में एक सरकारी नीतिगत मुद्दा है जो अदालतों के विचार करने के लिए नहीं है. याचिकाकर्ता का कहना है कि मई 2023 में केंद्र को एक अभ्यासवेदन स्थापित किया गया था. चूंकि, मुद्दा सरकारी नीति के विभिन्न उद्देश्यों (Menstrual Leave) को पूरा करता है, इसलिए इस न्यायालय के पास हमारे पिछले आदेश के आलोक में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है.’ मुख्य न्यायाधीश दीवई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि यह मुद्दा नीति से संबंधित है और अदालतों के विचार करने के लिए नहीं है.

उन्होंने कहा कि यह फैसला महिलाओं के लिए प्रतिकूल हो सकता है, क्योंकि (Menstrual Leave) कंपनियां फिर ऐसे महिलाओं को काम पर रखने से हिचकिचा सकती हैं. शीर्ष न्यायालय ने इसी वर्ष फरवरी में भी ऐसा ही रुख अपनाया था जब एक याचिका में सभी राज्यों को महिला कर्मचारियों और कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म के दर्द से संबंधित (Menstrual Leave) अवकाश के लिए नियम बनाने का निर्देश देने की मांग की गई थी.

बिहार और केरल राज्य में है छुट्टी का प्रावधान

Menstrual Leave

उस समय भी न्यायालय ने कहा था कि यह (Menstrual Leave) मामला नीतिगत क्षेत्र में आता है. शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि अगर राज्य इस संबंध में कोई कदम उठाएगा, तो केंद्र की परामर्श प्रक्रिया उनके मार्ग में नहीं आएगी. न्यायालय ने इससे पहले नर्सिंग होम में महिलाओं और कामकाजी महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश देने का अनुरोध करने वाली याचिका का निपटारा कर दिया था. शीर्ष न्यायालय ने तब कहा था कि यह मुद्दा (Menstrual Leave) नीतिगत है, इसलिए केंद्र को एक अभ्यासावेदन के आधार पर रखा जा सकता है.

वरिष्ठ वकील ने कहा कि अभी तक केंद्र की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया है. वर्तमान में, बिहार और केरल देश के दो ऐसे राज्य हैं, जहाँ मासिक धर्म अवकाश (Menstrual Leave) का प्रावधान है. जहाँ बिहार में महिला कर्मचारियों के लिए दो दिन की छुट्टी की नीति है, वहीं केरल में महिला कर्मचारियों के लिए तीन दिन की मासिक छुट्टी का प्रावधान है.

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