Makar Sankranti: भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां हर तीसरे किलोमीटर पर भाषा और पानी बदल जाता है। मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का त्योहार हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। देश के अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। पंजाब में इसे लोहरी के नाम से जाना जाता है, असम में इसे बिहू के नाम से जाना जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में मकर संक्रांति के दिन एक बहुत ही अनोखा मेला लगता है। इस मेले में बड़ी संख्या में प्रेमी जोड़े आते हैं और मन्नत मांगते हैं। मान्यता है कि यहां मांगी गई मन्नतें पूरी होती हैं।
Makar Sankranti पर लगता है अनोखा मेला
दरअसल, मकर संक्रांति (Makar Sankranti) पर भूरागढ़ किले पर बड़ी संख्या में प्रेमी जोड़े पहुंचते हैं। इस किले की कहानी किसी फिल्मी प्रेम कहानी से कम नहीं है। कहा जाता है की इस किले के राजा की बेटी को नांच दिखाने वाले नट से प्यार हो गया था. दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते हैं. जब राजा को इस बात का पता चला तो उसने अपने मंत्रियों से सलाह ली और एक रणनीति बनाई। फिर उसने नर्तकी को बुलाया और उसके सामने के शर्त रखा। उसने अपने प्रेमी की खातिर यह शर्त स्वीकार कर ली।
प्रेमी के याद में बनवाया गया एक मंदिर
राजा ने उनके सामने शर्त रखी कि यदि तुम केन नदी से किले तक का सफर रस्सी के सहारे तय करोगे तो मैं अपनी बेटी का विवाह तुमसे कर दूंगा। इस पर वह राजी हो गया. इसके बाद वह रस्सी पर चलने लगा. लेकिन आधा रास्ता तय करने के बाद राजा को लगने लगा कि अगर उसने शर्त पूरी कर दी तो उसे अपनी बेटी का विवाह उससे करना होगा। क्रोध में आकर राजा ने रस्सी काट दी और प्रेमी नीचे नदी में गिर गया। नदी में डूबने से उसकी मौत हो गयी. तभी से उसकी याद में यहां एक मंदिर बनाया गया, जहां हर साल मकर संक्रांति पर प्रेमी जोड़े अपनी मन्नत मांगने आते हैं।
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