राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट ने भूचाल मचा के रखा है। अब जब कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया है तो उनके राजनीतिक करियर पर प्रश्न चिन्ह लगने लगे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के प्रबन्धन और आलाकमान तक उनकी पहुंच ने कांग्रेस में सचिन पायलट का करियर हाशिए पर ला दिया है। एक युवा नेता जो बहुत तेजी से राजनीति में कामयाबी की सीढ़ियों में ऊपर चढ़ रहा था अचानक उसमें ब्रेक लग गया है।
कॉर्पोरेट जॉब की इच्छा
राजनीति में आने से पहले सचिन पायलट का करियर साधारण था। वो कॉरपोरेट जॉब करना चाहते थे। वह सेना में एयर फोर्स पायलट बनना चाहते थेे। लेकिन एक सड़क हादसे में अचानक हुई पिता राजेश पायलट की मौत ने उनका कैरियर बदल दिया और धीरे-धीरे वह राजनीति में सक्रिय हो गए, राजेश पायलट बड़े कांग्रेस नेता थे तो वहीं उनकी मां भी विधायक रह चुकीं थीं। सचिन पायलट ने 2004 में दौसा से लोकसभा चुनाव लड़ा था।
पायलट बनने का लाइसेंस
सचिन पायलट अपने पिता की तरह ही पायलट बनना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने अपनी मां को बिना बताए विमान उड़ाने का लाइसेंस भी ले लिया था। लेकिन उनकी आंखों में खराबी के कारण ऐसा नहीं हो सका। सचिन ने सेंट स्टीफन से पढ़ाई की और बाद में अमेरिका में जाकर उच्च स्तर की पढ़ाई के साथ जॉब भी की। सचिन अपने पिता की तरह ही चुनाव प्रचार में जनता के बीच खुद ही कार चला कर जाते हैं। उनका यह अंदाज लोगों को बहुत पसंद आता है।
नहीं है सोने का कटोरा
सचिन पायलट पर वंशवाद के कई बार आरोप लगे थे। ऐसा कहा जाता था कि सचिन पायलट के पिता कांग्रेस के एक बड़े नेता थे। इसलिए सचिन आसानी से राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते गए। इसको लेकर एक बार सचिन ने कह दिया था कि राजनीति कोई सोने का कटोरा नहीं है। यहां पर वही आगे बढ़ता है जो काम कर पाता है। सचिन अपने ऊपर लगे आरोपों पर खुद ही सफाई के साथ जवाब दे देते हैं।
अपने दम पर जीता चुनाव
राजस्थान 2013 के चुनाव में हारने के बाद कांग्रेस में सचिन पायलट ही ऐसे नेता थे जो चुनाव होने तक 5 साल जनता के घर-घर तक जाते थे। बूथ लेवल से लेकर ऊपर तक उनकी हर जगह पकड़ थी। सरकार के खिलाफ आंदोलन विरोध प्रदर्शन और वसुंधरा की नीतियों की नीतियों के खिलाफ बोलने पर सचिन पायलट ने पुलिस की लाठियां खाईं और हर वो काम किया जिससे राज्य में वसुंधरा की सरकार कमजोर हुई। नतीजा ये हुआ कि 2018 में कांग्रेस की 99 सीटों और घटक दलों के समर्थन के दम पर एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी।
अब होगा अहम फैसला
चुनाव जीतने के बाद जब बात सत्ता की आई तो आलाकमान ने उनके साथ नाइंसाफी कर दी राज्य की सियासत में उन्हें नंबर दो बनाते हुए अशोक गहलोत को राजस्थान के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी थमा दी।। यह बात सचिन पायलट को रास नहीं आई। शुरू से ही उनका गहलोत से विवाद रहा और आज बात यहां तक आ गई है कि कांग्रेस पार्टी ने उन्हें उप-मुख्यमंत्री पद से हटा दिया है।
अशोक गहलोत पर कांग्रेस ने अपनी श्रद्धा जाहिर की है। सचिन पायलट के पास अब कम रास्ते हैं या तो वह राजनीति में नई पार्टी बनाएंगे या बीजेपी में शामिल होंगे और या फिर तीसरा औ।र।बहुत ही कठिन रास्ता कांग्रेस में जाने का होगा। सचिन जो भी रास्ता चुनेंगे वो अनिश्चितता से घिरे उनके राजनीतिक जीवन में नया और अहम अध्याय होगा।
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