एक था भाई……वो भाई जिसकी सांसों से जुड़े थे रक्षा के धागे, जिससे जुड़े थे डोली को कंधा देने के वादे…मगर एक आंधी ने पल भर में ख्वाहिशों की इमारत को ढहा दिया. जैसे ही उसकी सांस टूटी कि साथ ही बहन रुचि के सारे सपने भी बिखर गये. आखिर होता भी क्यों न ऐसा संजीत उसका इकलौता भाई जो था. दूसरे रक्षाबंधन के मात्र एक हफ्ते ही तो रह गये हैं…आखिर वह किस तरह से काटेगी यह दिन.
हर साल जिस पूजा की थाली में वह अपने भाई के लिए रंग बिरंगी राखी, रोली और दीपक सजाती थी. वह थाली हमेशा के लिए अब सूनी हो गई. कहते हैं कि समय हर घाव पर मरहम लगा देता है, लेकिन हफ्ते भर बाद ही पड़ रहे रक्षाबंधन पर भला कौन सा मरहम उसके घावों को भर पायेगा.
उसकी पथरा गई आंखे सांत्वना देने आ रहे लोगों से बस यही सवाल कर रही हैं कि कोई एक भी उसके भाई को वापस कर सकता है क्या. अब चाहे कोई कितनी ही दौलत उसे मुआवजे के रूप में दे दे लेकिन उसके भाई जैसा कीमती हीरा कोई दे सकता है क्या भला.
पुलिस के सामने उसका करूण क्रंदन शायद ही कोई भूल पाए जिसमें वह चीखते हुए पूछ रही है कि उसका भाई कहां है…अब वह किसे राखी बांधेगी…आखिर कैसे थे वो जल्लाद थे जिन्होंने संजीत की जान लेते तनिक भी नहीं सोचा।
यहां हम बात कर रहे हैं कानपुर के बर्रा इलाके में रहने वाले संजीत यादव की। जिसकी महीना भर पहले अपहरण के बाद हत्या कर दी जाती है। मगर इधर बहन को उसकी हत्या का जरा भी अंदाजा नहीं होता और वह पुलिस अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगाती रहती है। ताकि कोई पुलिसवाला उसके भाई को सलामत वापस ला सके।
भइया को खोजते पथरा गई आंखे
लबों में भाई की सलामती और लंबी उम्र की दुआ मांगती, कभी मंदिरों में जाकर मत्था टेकती कि हे भगवान मेरे भइया को मिला दे, तो कभी पुलिस अधिकारियों के दरबार में गुहार लगाती। पर किसी ने उस अभागन रुचि की एक न सुनी। अंततः दरिंदों ने उसके इकलौते भाई संजीत की नृशंस हत्या करके शव नदी में फेंक दिया।
काश उसकी यह पीड़ा एसी में बैठे समाज के वह जिम्मेदार महसूस कर पाते तो शायद उसके भाई की जान बच जाती। भाई की मौत की खबर सुनते ही जैसे वह अर्ध विक्षिप्त हो गई। रात और दिन उसके होठों पर भाई का नाम रहता है। वह रह रहकर उससे जुड़ी यादों पर बिलख पड़ती है। कुछ देर के लिए रात में आंख लगती तो एकाएक चिहुंक उठती। मां और परिवारीजन समझाते हुए ढांढस बंधाते हैं।
आइए जाने कुछ परम्परागत कथाओं से भाई बहन के अटूट रिश्तों को
कथा एक—–
शास्त्रों में वर्णित है कि द्रोपदी श्री कृष्ण को अपना भाई मानतीं थीं और उन्हें राखी बांधती थीं. एक बार कृष्ण के हाथ में चोट लग गई और खून बहने लगा. इस पर द्रोपदी ने अपनी धोती का किनारा फाड़कर कृष्ण की कलाई में बांध दिया. जिसका ऋण चुकाने के लिए कृष्ण ने उस समय द्रोपदी की लाज रख ली जब दुशासन ने उनका चीर हरण किया था.
कथा दो——-
मध्यकालीन इतिहास की एक घटना जिसकी बहुत चर्चा की जाती है. कहते हैं कि चित्ताौड़ की हिंदु रानी कर्मावती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायुं को अपना भाई मानकर उनके पास राखी भेजी थी. हुमायुं ने कर्मावती की राखी स्वीकार कर ली थी और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह बहादुर शाह से युद्ध किया था.