कोरोला काल में दुनियाभर में कोरोना महामारी से निजात पाने के लिए वैक्सीन डवल्प की जा रही है। लेकिन अभी तक किसी भी देश के सफलता हाथ नहीं लगी है। अब तक मिली जानकारी के मुताबिक, वैक्सीन के ट्रायल अनेक स्टेज से होकर गुजरना पड़ता है। ये भी दांवा किया जा रहा है कि- कुछ कोरोना वायरस की वैक्सीन प्री- क्लीनीक्ल स्टेज में पहुंच चुकी हैं।
गौरतलब है कि- वैक्सीन की ट्रायल के दौरान कोई 100 प्रतिशत कामयाब होने की कोई गांरटी नहीं होती है। फॉर्मा इंडस्ट्री में ट्रायल और वैक्सीन की मार्किट तक पहुंचने में बड़ा अंतर देखा जा सकता है। सुपर पॉवर अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडिमिनिस्ट्रेशन के दिए गए आंकडों के अनुसार, इंसान के शरीर पर अगर 10 दवाईयां ट्रायल की जा चुकी हैं, तो उनमें से 9 मेडिशिन मार्किट में नहीं उपलबध नहीं कराई जाती हैं।
क्यों रूस ने कोरोना का टीका बनाने में दिखाई जल्दबाजी?
हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लाादिमीर पुतिन ने कोरोना की वैक्सीन तैयार होने का दांवा किया था। उन्होंने खुद आगे आकर इस बात की घोषणा की थी। रूस में बनी पहला कोरोना का टीका उनकी बेटी को लगाया था। लेकिन रूस का दावा खोखला साबित हो रहा है। और हर कोई ये कह रहा है कि रूस कोरोना की वैक्सीन बनाने को लेकर जल्दीबाजी दिखा रहा है। हालांकि अभी तक रूस में बनी वैक्सीन को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की ओर से अधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की गई है।
जल्दीबाजी में बनाई गई वैक्सीन खतरनाक साबित हो सकती है!
वहीं, दूसरी ओर दुनिया भर कोरोना वैक्सीन के दुष्परिणामों को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। अब अमेरीका स्थित वैक्शीन एजुकेशन सेंटर के निदेशक और फिलाडेल्फिया में इफेक्शियस डिजीज स्पेशलिस्ट के तौर पर चिल्ड्रे हॉस्पिटल में काम करने वाले पॉल ऑफिट का मानना है कि – ‘दूसरे अन्य देशों पर दबाव बढ़ सकता है और कोरोना वैक्सीन को बनाने के लिए गलत कदम उठा सकते हैं, जिसका लोगों को नुकसान उठाना पड़ सकता है’।