दिल्ली पुलिस ने कहा कि किसान आंदोलन की आड़ में सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जा रहे थे, उस सिलसिले में एक एफआईआर दर्ज की गई है। पुलिस ने बताया बताया की उसे सोशल मीडिया अकाउंट से अपलोड किया हुआ एक डॉक्यूमेंट हाथ लगा। इस डॉक्यूमेंट का नाम टूलकिट है। कथित तौर पर टूलकिट को खलिस्तानी संगठन पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन ने लिखा है।
टूलकिट और ग्रेटा का पूरा मामला आखिर है क्या
किसानों के आंदोलन से कथित तौर पर जुड़ी एक टूलकिट की दिल्ली पुलिस ने जाँच शुरू कर दी है। ये वही टूलकिट है जिसे स्वीडन की जानी-मानी पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने ट्वीटर पर शेयर करते हुए लिखा था कि “अगर आप किसानों की मदद करना चाहते हैं तो आप इस टूलकिट की मदद ले सकते हैं”। थोड़ी देर बाद ग्रेटा ने अपने इस टूलकिट वालों ट्वीट को डिलीट कर कर दिया था।
लेकिन दिल्ली पुलिस ने इसे लोगों में विद्रोह पैदा करने वाला टूलकिट (दस्तावेज) बताया है और इसे जाँच के दायरे में ले लिया है।
Delhi Police has taken cognizance of a 'Toolkit Document' found on a social media platform that predates and indicates a copycat execution of a conspiracy behind the 26Jan violence. The call was to wage economic, social, cultural and regional war against India.
— Delhi Police (@DelhiPolice) February 4, 2021
दिल्ली पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि साइबर सेल सोशल मीडिया पर नजरें बनाए हुए हैं, पुलिस को सोशल मीडिया अकाउंट से अपलोड किया हुआ टूलकिट नाम का एक डॉक्यूमेंट हाथ लगा है।
टूलकिट के मामले में दर्ज किया है पुलिस ने केस
पुलिस इस टूलकिट को लिखने वालों की तलाश कर रही है। पुलिस ने इसे लिखने वालों के खिलाफ़ आईपीसी की धारा-124ए, 153, 153ए, 120बी के तहत केस दर्ज किया है। हालांकि दिल्ली पुलिस की एफआईआर में किसी का नाम शमिल नहीं है।
मीडिया खबरों के हवाले से पता चला है कि, “पुलिस गूगल को एक पत्र लिखने वाली है ताकि इस टूलकिट को बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करने वाले लोगों का आईपी एड्रेस निकाला जा सके, और उन पर कार्यवाही करने में आसानी हो”।
दिल्ली पुलिस ने 4 फरवरी को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि “ये टूलकिट खालिस्तानी समर्थक संगठन पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के द्वारा बनाया गया है। इसे पहले अपलोड किया गया और फिर कुछ दिन बाद इसे डिलीट कर दिया गया”। कुछ मीडिया रिपोर्टस में दिल्ली पुलिस के सूत्रों का हवाला देकर यह दावा किया गया है कि “इस संस्था के सह-संस्थापक मोघ धालीवाल है, जो खुद को खलिस्तानी समर्थक बताता है और कनाडा के वैंकूवर में रहता है।
टूलकिट आखिर है क्या
मौजूदा दौर में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जो भी आंदोलन होते हैं चाहे वो अमेरिका में चला ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ हो, अमेरिका का ‘एंटी-लॉकडाउन प्रोटेस्ट’ हो पर्यावरण से जुड़ा ‘क्लाइमेट स्ट्राइक कैंपेन’ हो या दूसरा कोई और आंदोलन हो, सभी जगह आंदोलन से जुड़े लोग कुछ एक्शन पॉइंट्स तैयार करते हैं, इसका मतलब लोग कुछ ऐसी चीज़े की तैयारी करते हैं जो आंदोलन को समझने और आगे बढ़ाने के लिए का जा सकती हैं।
जिस दस्तावेज़ में इस तरह के आंदोलन से जुड़े हुए ‘एक्शन प्लान’ और ‘एक्शन पॉइंट्स’ को दर्ज किया जाता है, उसे ही टूलकिट कहते हैं।
सोशल मीडिया पर इस तरह के दस्तावेजों को टूलकिट के नाम से इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह के टूलकिट से सोशल मीडिया की रणनीति से लेकर व्यापक स्तर पर सामूहिक प्रदर्शन करने की जानकारी भी दी जाती हैं।
क्यों मददगार होती है आंदोलन में टूलकिट
इस तरह के टूलकिट को अक्सर ऐसे लोगों के बीच में शेयर किया जाता है, जिनकी मौजूदगी आंदोलन के प्रभाव को बढ़ानें में मददगार साबित हो सकती है। ये टूलकिट किसी आदोंलन की रणनीति का अहम हिस्सा होते है जो आंदोलन को कामयाब बनाते हैं।
अगर इसे और आसान भाषा में कहें तो, आप टूलकिट को दीवारों पर लगाये जाने वाले उन पोस्टरों का परिष्कृत और आधुनिक रूप कह सकते हैं, जिनका इस्तेमाल वर्षों से आंदोलन करने वाले लोग अपील या आव्हान करने के लिए करते रहे हैं।