उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा कुख्यात अपराधी विकास दुबे के 5 सहयोगियों के मारे जाने की गहन जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पी आई एल ) दायर की गई है. विकास दुबे के इन पांचों सहयोगियों पर संदेह था कि वह 2 जुलाई की रात अथवा 3 जुलाई की सुबह पुलिस टीम पर हुए जानलेवा हमले में शामिल हुए थे।
इस घटना में 8 पुलिस जवान शहीद हो गए थे। तत्पश्चात इन सभी पांचों आरोपियों को पुलिस एनकाउंटर में मार दिया गया। वकील व याचिकाकर्ता घनश्याम उपाध्याय ने विकास दुबे के एनकाउंटर से एक दिन पहले ही 9 जुलाई को याचिका दाखिल की थी।
पहले से ही था विकास के एनकाउंटर में मारे जाने का शक
गौरतलब है कि यह याचिका विकास के सरेंडर करने के बाद ही दायर की गई थी. क्योंकि विकास को भी किसी फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार दिए जाने का संदेह था। इसलिए इस याचिका के माध्यम से घनश्याम उपाध्याय ने याचिका दाखिल करने के साथ ही तुरंत सुनवाई किये जाने के साथ ही विकास दुबे को सुरक्षा दिए जाने की भी मांग की थी और संयोग देखिए कि याचिका के कुछ ही घंटों बाद 10 जुलाई को एसटीएफ ने कथित मुठभेड़ में विकास दुबे को मार गिराया।
हालाँकि इस मामले में भी एक सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि विकास ने खुद को एनकाउंटर से बचने के लिए ही मध्य प्रदेश पुलिस को सरेंडर किया और बाद में उत्तर प्रदेश पुलिस के हाँथ में आ गया. ऐसे में एक बड़ा सवाल यह भी है कि फिर वह क्यों भागेगा। सबसे बड़ी बात यह कि याचिका में पहले ही ये सम्भावना जता दी गई थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस उसे अन्य सह अभियुक्तों की तरह ही एनकाउंटर में मार देगी।
पुलिस को नहीं है कानून हाथ में लेने का अधिकार
याचिका करने वाले ने यह भी कहा है कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा कानपुर एनकाउंटर में विकास दुबे के तोड़े गए घर, कार आदि से कानून का साफ उल्लंघन हुआ है. याचिका करने वाले ने कहा है कि अपराध सिद्ध होने पर दंड देने का कार्य न्यायालय को है.
पुलिस को कानून हाँथ में लेकर मुठभेड़ के नाम पर अभियुक्त को दण्डित करने का अधिकार नहीं है. याचिका करने वाले ने शीर्ष अदालत से मांग की है कि विकास दुबे का घर व कार तोड़ने वालो पर एफआईआर दर्ज़ की जाए व पूरे मामले की सीबीआई जाँच कराई जाए.