कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज अपनी उम्र का अर्धशतक पूरा कर लिया है। 19 जून 1970 को जन्मे राहुल गांधी ने कोरोनावायरस की वैश्विक महामारी और भारत-चीन विवाद को लेकर राहुल ने ये निर्णय किया है कि वो इस बार अपना जन्मदिन नहीं मनाएंगे। ये बात और कि कांग्रेस समर्थक और नेता राहुल गांधी के जन्मदिन पर गरीबों को दान और भोजन देने जैसे सामाजिक कार्य कर रहे हैं।
आज राहुल गांधी जब अपनी उम्र के 50 साल पूरे कर चुके हैं तो उनकी 135 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी देश की राजनीति के हासिए या कहा जाए कि सबसे बुरे दौर में पहुंच चुकी है। ऐसे में राजनीतिक रूप से राहुल गांधी के भविष्य को लेकर कुछ बिंदु बेहद जरूरी हैं।
कांग्रेस पार्टी का बुरा दौर
राहुल गांधी की कांग्रेस तीन से राज्यों की सरकारों में सिमट कर रह गई है। जहां है वहां भी यही डर रहता है कि कब विधायक पाला बदल लें। राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस के प्रति जनता में विश्वसनीयता की सबसे अधिक कमी है। जिसके कारण 2014 में कांग्रेस अपने सबसे कम लोकसभा सीटों के आंकड़े 44 पर अटक गई और 2019 आते-आते ये आंकड़ा 8 कदम चलकर 52 तो पहुंचा भी तो सामने सत्ताधारी दल अधिक सीटों के साथ सामने खड़ा है।
पार्टी के इस बुरे प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेने के साथ राहुल ने अध्यक्ष पद से किनारा कर लिया है, जो वर्तमान में अंतरिम रूप से मां सोनिया गांधी के पास है, लेकिन सवाल 360° घूमने के बाद भी एक ही सवाल उठता है और वो है भविष्य के लिए विकल्प ?
छवि सुधारने की चुनौती
राहुल गांधी के सामने जनता के बीच अपनी छवि सुधारने की बड़ी चुनौती होगी। प्रतियोगियों द्वारा स्थापित शल मीडिया से लेकर आम जनता तक राहुल की जो छवि प्रचारित की गई है वो उन्हें देश की राजनीति में एक अपरिपक्व नेता मानती है। इसमें राहुल गांधी की खुद की गलतियां भी बड़ी जिम्मेदार है। संसद में आंख मारने से लेकर कई बार बिना तथ्यों के आक्रामकता दिखाना और बड़बोलेपन पर में कुछ भी बोल जाना उनके लिए मुसीबत बन गईं हैं।
राहुल गांधी ही खुद के दुश्मन
पत्रकार और कांग्रेस को करीब से जानने वाले रशीद किदवई कहते हैं कि राहुल गांधी 2003-04 में राजनीति में आने के बावजूद 17 साल में अपनी भूमिका नहीं तय कर पाए हैं पार्टी राहुल गांधी के नेतृत्व में आगे बढ़ेगी या नहीं इसको लेकर कोई साफगोई नहीं है इन्हीं कारणों के चलते जल्दी राजनीति में आने के बावजूद राहुल गांधी विफल रहे हैं जो कि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यहीं नहीं रशीद मानते हैं कि ये दौर जब देश वामपंथी सोच को खारिज कर रहा है, ऐसे में राहुल उस विचारधारा को स्वीकारते जा रहे हैं एक दौर में पार्टी का मजबूत वोट बैंक रहा मिडिल क्लास अब पार्टी से दूर हो चुका है। बाहरी बातें छोड़ भी दें तो ये सारी खामियां पार्टी के अंदर की हैं और इसे पार्टी में आसानी से सुधारा भी जा सकता है।
आत्मविश्वास बढ़ाएं राहुल गांधी
कांग्रेस पार्टी पिछले सात सालों से चुनावों में हारती जा रही है। जिसके चलते पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में चुनाव-दर-चुनाव आत्मविश्वास की कमी हो गई है। यही नहीं 2019 लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने भी अंदाज में इस्तीफा दिया था जैसे उनका आत्मविश्वास अब रसातल में चला गया है और अब वो घर बैठेंगे। इसलिए राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा के मजबूत संगठन से लड़ने के लिए आत्मविश्वास से भरा कार्यकर्ताओं का वर्ग खड़ा करना होगा जिसके लिए उन्हें खुद जमीन पर उतरना होगा।
राहुल की भारतीय राजनीति में अहमियत बहुत अधिक है ये बात खुद उनके विरोधी भी जानते हैं इसी के चलते राहुल के एक छोटे से बयान पर मोदी सरकार की पूरी कैबिनेट समेत भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनके खिलाफ हमलावर हो जाता है हाल के दिनों में राहुल जिस अंदाज में सरकार को जमीनी मुद्दों पर घेर रहे हैं और सत्ता से सवाल पूछ रहे हैं, ये अंदाज एक बड़े तबके को रास आ रहा है कई राजनीतिज्ञ भी मानते हैं कि राहुल गांधी का ये अंदाज भविष्य में उनके और कांग्रेस के लिए फायदेमंद हो सकता है।
युवाओं में बनाएं विश्वसनीयता
कांग्रेस और राहुल गांधी खुद को युवा मानते हैं लेकिन इसके बावजूद देश के युवाओं का एक बड़ा हिस्सा राहुल गांधी और कांग्रेस से सरोकार नहीं रखता है कांग्रेस के इतिहास और प्रासंगिकता को लेकर जो चर्चाएं और विरोधियों द्वारा जो एजेंडा सेट किया गया है कांग्रेस उसमें फंसकर रह गई है। किसी भी मुद्दे पर एक निश्चित विचार की कमी और निर्णय लेने के कारण देश का युवा कांग्रेस और राहुल गांधी को नजरंदाज कर रहा है। इस कारण एक बेबाक राय और विचारधारा के दम पर जमीनी मुद्दों के साथ राहुल और उनकी पार्टी को देश के युवाओं के बीच अपनी पैठ बनानी होगी।
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