कभी 900 रुपए सैलरी की थी नौकरी, आज हैं 100 करोड़ की कंपनी के मालिक

एक समय था जब अजमेर के राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज से 1998 में पासआउट प्रिंटिंग टेक्नॉलॉजिस्ट सोनवीर सिंह को केन्या के नैरोबी में वर्क परमिट तक नहीं मिल रहा था। फ्लैट का किराया देने तक के पैसे नहीं थे, दोस्तों की मदद से दो टाइम का खाना मिल पाता था। आज सोनवीर का नैरोबी में 100 करोड़ की कंपनी है। सालाना टर्नओवर है करीब 50 करोड़ रुपए। अजमेर में अपने कॉलेज के साथियों से मिलने पहुंचे सोनवीर की संघर्ष की कहानी

900 रु. सैलरी से शुरुआत

आज प्रिंट पैकेजिंग में अपने नाम की पहचान बनाने वाले सोनवीर के काम का दबदबा केन्या ही नहीं, बल्कि आसपास के कई देशों सहित चीन तक फैला है। सोनवीर ने अपने करियर की शुरुआत 900 रुपए की सैलेरी से की थी, सोनवीर केन्या के पहले ऐसे बिजनेस टाइकून हैं, जिन्होंने अफ्रीकी देशों में अल्ट्रा वॉयलट (यूवी) इंक आैर फ्लैक्सो प्रिंटिंग की तकनीक को इंट्रोड्यूज किया। गत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तंजानिया पहुंचे थे, वहां उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की थी कि भारतीय यहां कारोबार कर अपना लोहा मनवा रहे हैं। अफ्रीकी देश तंजानिया, यूगांडा, रवांडा सहित अन्य देशों में करोड़ों का कारोबार है।

एशियन प्रिंटिंग मशीनरीज से ऑफर मिला

सोनवीर बताते हैं कि 18 साल पहले उन्होंने प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी में डिप्लोमा इंजीनियरिंग किया था। कॉलेज से पासआउट होते ही गुड़गांव में डोमिनेंट ऑफसेट मैन्यूफैक्चरिंग लिमिटेड में जॉब मिली। शुरुआती दौर में कंपनी ने ट्रेनिंग पर रखा, तब 900 रुपए मासिक मिलते थे। फिर 1500 रुपए की सैलेरी पर यहीं दो साल काम किया। इसी दौरान दिल्ली में एशियन प्रिंटिंग मशीनरीज से ऑफर मिला, कंपनी ने मेंटिनेंस इंजीनियर की जिम्मेदारी दी। कुछ समय काम करने के बाद नोएडा के इंटरनेशनल प्रिंटोपेक्ट लिमिटेड में प्रिंटिंग इंजीनियर के तौर पर काम किया। फिर फ्लैक्सो प्रिंटिंग में प्रोडक्शन सुपरवाइजर आैर आठ माह बाद यहीं हैड ऑफ द डिपार्टमेंट का जिम्मा मिला। यहीं से जिंदगी का यू-टर्न शुरू हुआ। अफ्रीकी देश नैरोबी की एक कंपनी से ऑफर मिला। पत्नी के साथ केन्या के नैरोबी शहर पहुंचे। तीन माह बाद ही जॉब चली गई, मालूम चला कि नेरोबियंस ने यूज एंड थ्रो किया, उन्हें सिर्फ तकनीक सीखनी थी। वापसी का टिकट हाथ में था, तब वहीं जॉब का ऑफर मिलानैरोबी में सोनवीर की मदद उसके दोस्त अश्विनी ने की। रहने आैर खाने की व्यवस्था की। जॉब नहीं मिलने पर दोस्त की मदद से वापसी का टिकट बनवाया। जिस दिन निकलना था, एक दिन पहले ही एल्गोन केन्या लिमिटेड से ऑफर मिला। डायरेक्टर विमल कंठारिया उसकी काबिलियत को पहचानते थे।इस कंपनी में 1.50 लाख रुपए प्रतिमाह सैलरी थी। कुछ दिन ठीक चला, लेकिन वर्क परमिट की अवधि समाप्त हो गई।

वर्क परमिट की अवधि समाप्त, फिर छिन गई जॉब

जब वर्क परमिट की अवधि समाप्त हो गई, तो किसी प्रतिद्वंद्वी ने केन्या इमिग्रेशन से शिकायत कर दी। कंपनी ने हाथोंहाथ जॉब से हटा दिया। डायरेक्टर ने वर्क परमिट दुबारा बनवाने में मदद की, लेकिन काम नहीं बना। दूसरी बार नौकरी छिनी थी। प्रशासन ने पासपोर्ट जब्त कर डिपोट करने की तैयारी शुरू कर दी थी। तब सोनवीर की मुलाकात जयपुर के बजरंग राठौड़ से हुई। राठौड़ ने किसी जगदीश से मिलवाया, जिसकी इमिग्रेशन ऑफिस में पहचान थी। वहां सीनियर ऑफिसर ने संबंधित अधिकारी को बुलाकर पूछा कि सोनवीर को क्यों डिपोट किया जा रहा है। क्या यह क्रिमिनल है, या इसने कोई चोरी की है। इसका जवाब उसके पास नहीं था, सीनियर ऑफिसर ने हाथोंहाथ पासपोर्ट वापस दिलवा दिया आैर छह माह का वर्क परमिट बनवाने के लिए मिल गया।

भाइयों ने रुपए भेजे लेकिन उसने वहां एक दोस्त की मदद की

भरतपुर के गुनसारा के रहने वाले बड़े भाई एयरफोर्स से रिटायर्ड कैप्टन धर्मवीर सिंह आैर छोटे भाई भरत सिंह ने तुरंत 1 लाख रुपए भेजे। जिस दोस्त ने पूर्व में मदद की थी, उसे इटली जाना था आैर वहां जाने के लिए पैसों की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। सोनवीर ने खुद बेहाल होते हुए भी भाइयों द्वारा भेजी गई रकम दोस्त को दे दी। केन्या की करेंसी सिलिंग है, अब स्थिति यह थी कि सिटी बस में 10 सिलिंग देने तक नहीं थे, रोजाना नौकरी तलाशने के लिए पैदल ही आना-जाना पड़ता था।

शुरुआत में फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ

जिस कंपनी ने नौकरी से हटाया था वहां से अब यह कहकर नौकरी देने से इनकार कर दिया गया कि उसकी जगह किसी और को रख लिया गया है। वर्क परमिट इसी कंपनी के लिए बना था, इसमें कंपनी नहीं बदली जा सकती थी। मजबूरी में जहां 1.50 लाख सैलेरी थी, वहीं 50 फीसदी सैलेरी में काम करना पड़ा। एक साल काम किया, फिर एक कोरोगेशन (कर्टन मैन्यूफैक्चरिंग) कंपनी ज्वाइन कर ली, एल्गोन केन्या लिमिटेड कंपनी भी नुकसान में आकर बिक गई। काफी उतार-चढ़ाव के बाद खुद का काम शुरू करने की ठानी। 2009 में श्री कृष्ण ओवरसीज लिमिटेड के नाम से कंपनी का रजिस्ट्रेशन करवाया। इधर, पत्नी निर्मला ने पहले मसाले-चावल इंपोर्ट का काम शुरू किया, फिर रेस्त्रां व डिपार्टमेंटल स्टोर चलाया। हर काम में फायदा कम, नुकसान ज्यादा हुआ, लेकिन हार नहीं मानी।

जिद थी केन्या से नहीं जाएंगे, यहीं पैर जमाने हैं जमा लिए

सोनवीर ने बताया कि जिस फॉर्मर एम्प्लाय ने केन्या इमिग्रेशन में शिकायत की थी, उसने केन्या छोड़ने की बात की तो उसने ठान लिया कि अब यहीं रहकर कारोबार करना है। एक पैकेजिंग मशीन खरीदी। 4 कर्मचारियों के साथ काम शुरू कर दिया। देर रात तक रोजाना 16-16 घंटे काम किया। इसी दौरान मूमासा में कोरोगेशन फैक्ट्री बिकने का पता चला। टीम के साथ देखने पहुंचे, डायरेक्टर से बात हुई। उस कंपनी के डायरेक्टर ने सभी मशीनें क्रेडिट पर दे दीं। काम शुरू कर दिया आैर कर्मचारियों की संख्या हो गई 25। क्रेडिट पर कच्चा माल भी मिलना शुरू हो गया। फिर पहले 30 लाख का टर्नओवर, फिर 80 लाख से सीधे 14 करोड़ पर पहुंच गए। आसपास के देशों से भी काम मिलने लगा तो टर्नओवर बढ़कर 50 करोड़ पहुंच गया। आज 100 करोड़ की कंपनी में 110 लोग सेवाएं दे रहे हैं।

 

 

 

 

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