एक तरफ जहां भारत चीन के खिलाफ इस वक्त सख्त रुख अख्तियार किए हुए हैं तो वहीं अमेरिका में चीन के खिलाफ सख्त कदम उठा रहा है। भारत में 59 चाइनीज मोबाइल एप्लिकेशंस को बैन करके जहां चीन को तगड़ा झटका दिया है, तो वहीं अब अमेरिका ने चीन के लिए मुश्किलें बढ़ाते हुए एक चौंकाने वाला फैसला ले लिया है।
मूल्यांकन का मिला मौका
अमेरिकी विदेश मंत्री चीन और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी को लगातार लताड़ते रहे हैं। इसी बीच उन्होंने साफ कहा कि चीन के लिए ट्रंप को नीतियों के पुनर्मूल्यांकन का मौका मिला है। उन्होंने कहा,
‘चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हॉन्ग कॉन्ग की स्वतंत्रता को खत्म करने के फैसले ने ट्रंप प्रशासन को हॉन्ग कॉन्ग को लेकर अपनी नीतियों को फिर मूल्यांकन करने का मौका दिया है। चूंकि चीन राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को पारित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, इसलिए अमेरिका हॉन्ग कॉन्ग को अमेरिकी मूल के रक्षा उपकरणों को रोक रहा है।’
रक्षा उपकरणों पर बैन
अमेरिका के विदेश माइक पॉम्पियो धे एक बड़ा फैसला लेते हुए ट्वीट किया और झटका दे दिया।
‘आज अमेरिका हॉन्ग कॉन्ग को रक्षा उपकरण और दोहरे इस्तेमाल में आने वाली संवेदनशील तकनीकों के निर्यात पर बैन लगाने जा रहा है। यदि पेइचिंग हॉन्ग कॉन्ग को एक देश, एक प्रणाली समझता है तो हमें भी निश्चित रूप से समझना होगा।’
राष्ट्रीय सुरक्षा के तहत फैसला
अमेरिकी विदेश मंत्री द्वारा दाए गए वक्तव्य में कहा गया कि अमेरिका द्वारा लिया गया ये फैसला फैसला अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए है। पोम्पियो ने कहा कि हम अब यह भेद नहीं करेंगे कि ये उपकरण हॉन्ग कॉन्ग को निर्यात किए जा रहे हैं या चीन को।
इस दौरान उन्होंने चीन की सेना को लेकर शंका जाहिर करते हुए कहा कि हम इस बात का खतरा नहीं उठा सकते हैं कि ये उपकरण और तकनीक चीन की सेना पीपल्स लिबरेशन के पास पहुंच जाएं जिसका मुख्य मकसद कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही को किसी भी प्रकार से बनाए रखना है। इस दौरान उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की जमकर आलोचना की है।
भड़क उठा है चीन
अमेरिका के इस सख्त रवैए पर अब चीन भी भड़क गया है। चीन ने कहा है कि वो गलत रुख अख्तियार करने वाले अमेरिकी अधिकारियों का वीजा निरस्त करेगा।
चीन के विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता झाओ लिजियान ने अपनी दैनिक ब्रीफिंग में इसकी घोषणा की, लेकिन उन्होंने विस्तृत जानकारी नहीं दी। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस कदम से केवल अमेरिकी सरकार के अधिकारियों को निशाना बनाया जाएगा या फिर निजी क्षेत्रों के अधिकारी भी चीन इस फ़ैसले में शामिल करेगा।
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