कोरोनावायरस और लॉकडाउन ने सबकुछ अस्त-व्यस्त कर दिया है लोगों के सपने टूट चुके हैं। लोगों को दूसरे शहरों में अपनी नौकरी काम काज सब छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। ऐसी ही एक दास्तां है मध्य प्रदेश की जहां मनरेगा में वो लोग काम करने को मजबूर हैं, जो सिविल इंजीनियर हैं और उनके आगे बढ़ने के सपने हैं।
मजबूरी की मजदूरी
दरअसल लॉकडाउन के कारण अब एमपी के खरगोन जिले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के तहत मजदूरी कर रहे लोगों में सिविल इंजीनियर सहित उच्च शिक्षा प्राप्त कई युवा भी शामिल हैं।
आर्थिक रूप से कमजोर पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले सिविल इंजीनियर युवक का सपना ‘डिप्टी कलेक्टर’ बनने का है। लेकिन कोविड-19 की मार के बीच उचित रोजगार के अभाव में उसे इन दिनों मजदूरी करनी पड़ रही है।
परीक्षा की कर रहे थे तैयारी
लॉकडाउन और कोरोनावायरस के दौर में इंदौर से करीब 150 किलोमीटर दूर गोवाड़ी गांव में तालाब खोद रहे मजदूरों में से 24 वर्षीय सचिन यादव ने बताया,
‘मैंने वर्ष 2018-19 में सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक उपाधि प्राप्त की थी। मार्च के आखिर में कोविड-19 के लॉकडाउन की घोषणा से पहले मैं इंदौर में रहकर मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहा था।’
कोई काम छोटा नहीं
कोरोनावायरस और लॉकडाउन के कारण मनरेगा में काम करने को मजबूर ने कहा बहाना बनाना कोई हल नहीं है। उन्होंने कहा,
मुझे मनरेगा के तहत एक दिन की मजदूरी के बदले 190 रुपये मिलते हैं। इसके लिए मुझे दिन में आठ घंटे काम करना होता है। कोई भी काम छोटा नहीं होता। कोविड-19 के संकट का बहाना बनाकर मैं अपना वक्त बर्बाद नहीं करना चाहता। लिहाजा मुझे अपने गांव में जो रोजगार मयस्सर है, मैं वह काम कर रहा हूं।’
डिप्टी कलेक्टर की चाह
वैश्विक महामारी कोरोनावायरस और उसके कारण हुए लॉकडाउन ने सचिन के सपने तोड़ दिए हैं। सचिन ने बताया,
‘लॉकडाउन के कारण कुछ दिन मुझे इंदौर में ही रहना पड़ा। आवागमन के लिए प्रशासन की छूट मिलते ही मैं अपने गांव लौट आया क्योंकि कोविड-19 के प्रकोप के चलते मुझे इंदौर में रहना सुरक्षित नहीं लग रहा था। मेरी कोचिंग क्लास भी बंद हो गई थी। मेरा लक्ष्य डिप्टी कलेक्टर बनना है। लिहाजा मजदूरी के साथ अपने गांव में ही एमपीपीएससी परीक्षा की तैयारी भी कर रहा हूं।’