&Quot;जिंदा रहने का अरमान भी नहीं होता&Quot; ये था राहत इंदौरी का अंतिम शायरी

उर्दू शायरी के बादशाह राहत इंदौरी इस दुनिया से रुखसत हो गए हैं। कोरोनावायरस और हार्ट अटैक से हुई उनकी मौत ने लोगों को झंझोर कर रख दिया। उन्होंने अपने जीवन में ऐसे मुकाम हासिल किए जो लोगों के सपनों में ही होता है। उन्हें दो कार्डियक अरेस्ट आए और उसने उनके जीवन की डोर तोड़ दी। रात करीब साढ़े दस बजे उन्हें सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया और इसके साथ ही वो अपने पीछे बस अपनी यादें छोड़ गए।

कोरोना से हुए संक्रमित

&Quot;जिंदा रहने का अरमान भी नहीं होता&Quot; ये था राहत इंदौरी का अंतिम शायरी

राहत साहब को अगस्त को 9 अगस्त की रात खासी, बुखार और घबराहट होने के चलते सीएचएल अस्पताल में भर्ती कराया गया उनका कोरोना टेस्ट किया गया तो वो पॉजिटिव आया। जिसके बाद उन्हें अरबिंदो अस्पताल में भर्ती किया गया। सुबह उनकी हालत सुधरी लेकिन उन्हें दोपहर में उन्हें हार्ट अटैक आया।

2 घंटे में फिर अटैक

अरबिंदो मेडिकल कालेज के चेयरमैन डा. विनोद भंडारी ने बताया कि उन्हें दोपहर में जब हार्ट अटैक आया तो सीपीआर के इलाज़ से कट्रोल में लाया गया लेकिन फिर दो घंटे में उन्हें दोबारा हार्ट अटैक आया और वो इस दुनिया से रुखसत हो गए। डाक्टरों ने अपनी तरफ से सारी कोशिशें की लेकिन कामयाबी हाथ न लग सकी।

बेटे ने साझा किया शेर

अपने पिता के दुनिया छोड़ने के बाद राहत इंदौरी के बेटे सतलज इंदौरी ने एक उनके आखिरी शेर लोगों से सोशल मीडिया पर शेयर किए जो उन्होंने भावुक कर गए।

नए सफ़र का जो ऐलान भी नहीं होता,
तो जिंदा रहने का अरमान भी नहीं होता

तमाम फूल वही लोग तोड़ लेते हैं,
जिनके कमरों में गुलदान भी नहीं होता,

ख़ामोशी ओढ़ के सोई हैं मस्जिदें सारी,
किसी की मौत का ऐलान भी नहीं होता,

वबा ने काश हमें भी बुला लिया होता
तो हम पर मौत का अहसास भी नहीं होता

खाना बनाने का शौक

&Quot;जिंदा रहने का अरमान भी नहीं होता&Quot; ये था राहत इंदौरी का अंतिम शायरी

राहत इंदौरी की पत्नी सीमा राहत ने बताया कि उन्हें शायरी के अलावा खाना पकाना पसंद था वो अक्सर किचन में कुछ बनाने लगते थे वो गोश्त बनाने और खाने के शौकीन थे। अपने पति की यादों को साझा करते हुए वो भावुक हो गईं और उन्होंने बताया कि उन्हें एक शायर की पत्नी होने पर बेहद फक्र है वो दोनों कई बार सफर भी कर चुके थे।

सुपुर्द-ए-खाक राहत

राहत इंदौरी साहब रात करीब साढ़े दस बजे इंदौर के ही छोटी खजरानी कब्रिस्तान में इस्लामिक रीति-रिवाज के साथ सुपुर्द-ए-खाक किए गए। उन्होंने अपनी आखिरी सांसें शाम करीब पांच बजे ली थी।

 

 

 

 

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