दिल्ली का ‘बाबा का ढाबा’ और आगरा के ‘कांजी वडा’ वाले बाबा का ढाबा जैसे कई उदहारण है, जिनकी सोशल मीडिया ने ज़िन्दगी बदल दी। सोशल मीडिया के सही उपयोग ने आज इन लोगो की ज़िन्दगी रोशन कर दी है। इन लोगो के दिनभर मेहनत करने के बाद भी उनके दूकान पर एक भी कस्टमर नहीं आता था। जब लोगों ने अपनी फ़ोन की स्क्रीन में इन बुजुर्गों की दयनीय हालत को देखा, तो उसी वक्त लोगो ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया। अब कस्टमर की लाइन लग रही है।
लॉकडाउन में ऐसे चलाया घर का खर्च
ऐसे ही सोशल मीडिया पर एक और बुजुर्ग की दिल छूने वाली कहानी वायरल हुई। विशाल चौबे नाम के एक फ़ेसबुक यूज़र ने अपने पेज पर एक वीडियो शेयर किया। वीडियो में एक 85 साल के बुजुर्ग नजर आ रहे है। जो फ़रीदाबाद की गलियों में भेलपुरी बेचते हैं। इस उम्र में वह घर की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उनका बेटा लकवाग्रस्त है ,वह काम नहीं कर सकता है। बुजुर्ग हर दिन ठेला लगाकर भेलपूरी से 50 से 200 रुपये के बीच की कमाई करते है उसी से गुज़र बसर कर रहे हैं।
बुजुर्ग ने बताया कि लॉकडाउन में किस तरह उन्होंने अपना घर चलाया। बाबा ने कहा,
“लॉकडाउन में एक-दो बार राशन मिला लेकिन किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिली” वह 1200 रुपये के मासिक किराए के मकान में रहते हैं। आगे उन्होंने कहा “मैं अब कमा नहीं पाता हूं ”
शरीर भी ठीक से काम नहीं करता अब
उनके हाथ में 6 उंगलियों की वजह से उनका नाम छंगा लाल है। बाबा उम्मीदों से कभी मुंह नहीं मोड़ते ,85 साल की उम्र में वो हर दिन अपना ठेला लेकर सुबह निकल पड़ते हैं। उनके ठेले पर मिलने वाली भेल की कीमत 5 रुपये से शुरू होती है। कुछ पैसों तो कमा ही लेते है लेकिन कोरोना काल में लॉकडाउन के समय घर का गुज़ारा बहुत मुश्किल हो गया था। उनकी बहु भी काम पर नहीं जा रही थी तब घर का गुज़ारा करना मुश्किल था, लेकिन “ये बात मैं और मेरा ईश्वर ही जानता है कि हमने कैसे गुजारा किया।”